Tuesday, October 19, 2010

दिल से मिटती नहीं चुभन उसकी....


दिल से मिटती नहीं चुभन उसकी
रूह पर नक्श है छुअन उसकी

कभी मेले, कभी अकेले में
याद आती रही कहन उसकी

सर्द साँसों को मिल गयी राहत
आँच देती रही तपन उसकी

मैं मुकम्मल ग़ज़ल-सी हो जाऊं
शेर मेरे हों और कहन उसकी

जो भी जाये वहीँ का हो जाये
इतनी दिलकश है अंजुमन उसकी

किस क़दर खुश है मेरा दीवाना
हो गयी जैसे हो 'किरण' उसकी
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डॉ. कविता'किरण'