एक काम वाली बाई..जिसके बिना गृहिणियों की गृहस्थी अधूरी होती है.. उसकी अपनी भी कोई पीड़ा हो सकती है....एक अछूते विषय पर कुछ कहने की...उसकी संवेदना को व्यक्त करने की कोशिश करती हुई एक रचना प्रस्तुत है...
स्वेद नहीं आंसू से तर हूँ मेमसाब
घर के होते भी बेघर हूँ मेमसाब
मैं बाबुल के सर से उतरा बोझ हूँ
साजन के घर का खच्चर हूँ मेमसाब
घरवाले ने कब मुझको मानुस जाना
उसकी खातिर बस बिस्तर हूँ मेमसाब
आज पढ़ा कल फेंका कूड़ेदान में
फटा हुआ बासी पेपर हूँ मेमसाब
कभी कमाकर लाता न फूटी कौड़ी
कहता है धरती बंजर हूँ मेमसाब
उसकी दारु और दवा अपनी करते
बिक जाती चौराहे पर हूँ मेमसाब
आती -जाती खाती तानों के पत्थर
डरा हुआ शीशे का घर हूँ मेमसाब
अपनी और अपनों की भूख मिटाने को
खाती दर-दर की ठोकर हूँ मेमसाब
घर-घर झाड़ू-पोंछा-बर्तन करके भी
रह जाती भूखी अक्सर हूँ मेमसाब
कोई कहता धधे वाली औरत है
पी जाती खारे सागर हूँ मेमसाब
ऐसी- वैसी हूँ चाहे जैसी भी हूँ
नाकारा नर से बेहतर हूँ मेमसाब
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कविता'किरण'
स्वेद नहीं आंसू से तर हूँ मेमसाब
घर के होते भी बेघर हूँ मेमसाब
मैं बाबुल के सर से उतरा बोझ हूँ
साजन के घर का खच्चर हूँ मेमसाब
घरवाले ने कब मुझको मानुस जाना
उसकी खातिर बस बिस्तर हूँ मेमसाब
आज पढ़ा कल फेंका कूड़ेदान में
फटा हुआ बासी पेपर हूँ मेमसाब
कभी कमाकर लाता न फूटी कौड़ी
कहता है धरती बंजर हूँ मेमसाब
उसकी दारु और दवा अपनी करते
बिक जाती चौराहे पर हूँ मेमसाब
आती -जाती खाती तानों के पत्थर
डरा हुआ शीशे का घर हूँ मेमसाब
अपनी और अपनों की भूख मिटाने को
खाती दर-दर की ठोकर हूँ मेमसाब
घर-घर झाड़ू-पोंछा-बर्तन करके भी
रह जाती भूखी अक्सर हूँ मेमसाब
कोई कहता धधे वाली औरत है
पी जाती खारे सागर हूँ मेमसाब
ऐसी- वैसी हूँ चाहे जैसी भी हूँ
नाकारा नर से बेहतर हूँ मेमसाब
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कविता'किरण'