पेश आ रहे हैं यार भी अय्यार की तरह
मुजरिम तुम्ही नहीं हो फ़क़त जुर्म-ए-इश्क के
हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह
वादों का लेन-देन है, सौदा है, शर्त है
मिलता कहाँ है प्यार भी अब प्यार की तरह
ता-उम्र मुन्तज़िर ही रहे हम बहार के
इस बार भी न आई वो हर बार की तरह
अहले-जुनूं कहें के उन्हें संग-दिल कहें
मातम मना रहे हैं जो त्यौहार की तरह
यादों के रोज़गार से जब से मिली निजात
हर रोज़ हमको लगता है इतवार की तरह
पैकर ग़ज़ल का अब तो 'किरण' हम को कर अता
बिखरे हैं तेरे जेहन में अश'आर की तरह
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-कविता'किरण'.
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-कविता'किरण'.
khoob kahi kavita ji.......
ReplyDeletejee shukriya..nawazish Albela ji..:-)
Deleteअहले-जुनूं कहें के इन्हें संगदिल कहें
ReplyDeleteमातम मना रही हॆं जो त्योहात की तराह
एक एक शेअर बड़ा ख़ूबसूरत
बड़ी सुन्दर ग़ज़ल
jee inayat kallim sahab!!
DeleteYaadon ke rozgaar se...waah...behad khoobsurat misra hai aur poori ghazal bahut khoobsurat kahi hai aapne...daad kabool karen..
ReplyDeleteneeraj
bahut bahut shukriya Neeraj ji..apki aamad huyi aur apko gazal pasand aayi..inayat bani rahe...:-)
Deleteआपकी इस उत्कृष्ठ प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार २२ /५/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी |
ReplyDeletebahut sundar prastuti..
ReplyDeleteअच्छे अश’आर हैं कविता जी, बधाई स्वीकारें
ReplyDeletejee shukriya bahut bahut!!!
Deleteबहुत खूब...
ReplyDeleteसभी शे'र एक से बढ़कर एक!!!
वाह क्या बात है
ReplyDelete(अरुन = arunsblog.in)
लाजवाब................
ReplyDeleteati sundar prastuti....
ReplyDeleteta umr muntazirhi rahe ham...............
ReplyDeletebahut khub very nice
कविता जी
ReplyDeleteनमस्कार
पहली मर्तबा आपके ब्लॉग पर आया हूँ , काफी अच्छा लगा !
हरेक शेर लाजवाब हैं , बहुत खूब .....
साभार !!
क्या बेहतरीन शेर कहे हैं आपने, बहुत उम्दा। ग़ज़ल के एक एक शेर से आपकी महारत झलकती है। लाजवाब।
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