Saturday, February 13, 2010

डूबना तेरे ख्यालों में भला लगता ..( दिवस पर प्रेम एक की ग़ज़ल.......)


डूबना तेरे ख्यालों में भला लगता है
तेरी यादों से बिछड़ना भी सजा लगता है

जो भी मिलता है सनम तुझ पे फ़िदा लगता है
तेरी सूरत में है पोशीदा खुदा लगता है

दिल में, धड़कन में, निगाहों में छुपा लगता है
मुझमें रहता है मगर कौन मेर लगता है

क्यों क़दम मेरे तेरी और खिंचे आते हैं
तेरे घर का कोई दरवाज़ा खुला लगता है

जब तेरा ख्वाब हो आबाद मेरी पलकों में
दिल भी धडके तो निगाहों को बुरा लगता है

लड़खड़ा जाएँ क़दम साँस भी हो बेकाबू
जब शहर में तेरे आने का पता लगता है

'किरण' खूब जहाँ में हैं ग़ज़ल गो लेकिन
तेरा अंदाज़ ज़माने से जुदा लगता है
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डॉ कविता 'किरण'



Wednesday, February 3, 2010

बात छोटी है मगर सादा नहीं....


बात छोटी है मगर सादा नहीं
प्यार में हो कोई समझौता
नहींतुम पे हक हो या फलक पे चाँद होचाहिए पूरा मुझे आधा नहींदिल के बदले दांव पर दिल ही लगे
इससे कुछ भी कम नहीं ज्यादा नहींमर मिटे हैं जो मेरी मुस्कान पर
उनको मेरे ग़म का अंदाज़ा नहीं इक न इक दिन टूट जाना है 'किरण'
इसलिए करना कोई वादा नहीं
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डॉ कविता'किरण'