Monday, December 31, 2018

आ जाओ जिंदगी में नए साल की तरह



ग़ज़ल

गुज़रो न बस क़रीब से ख़याल की तरह
आ जाओ ज़िंदगी में नए साल की तरह

कब तक किसी दरख़्त-से तने रहोगे तुम
झुक कर गले मिलो कभी तो डाल की तरह

आँसू छलक पड़ें न फिर किसी की बात पर
लग जाओ मेरी आँख से रूमाल की तरह

ग़म ने निभाया जैसे वैसे तुम निभाओ ना
मत साथ छोड़ जाओ अच्छे हाल की तरह

बैठो वफ़ा की बज़्म में भी दो घड़ी हुज़ूर
उठते हो बार-बार क्यों सवाल की तरह

अचरज करुँ "किरण" मैं जिसको देख उम्र-भर
हो जाओ ज़िंदगी में उस कमाल की तरह
- डॉ कविता'किरण'

Monday, November 12, 2018

एक मुक्तक

अना  को भूल के दुश्मन का एहतराम करें
भला किसी को कहाँ तक हमीं सलाम करें
अजब है रस्म निभाना भी मुस्कुराना भी
चलो वफाओं का किस्सा यहीं तमाम करें
-कविता किरण

Friday, November 2, 2018

"मी टू" पर एक विचार


"मी टू"
-----------
मुझसे किसी ने कहा आप एक जागरूक एवम ज़िम्मेदार महिला होने के साथ-साथ एक कलमकारा भी हैं। इस नाते "मी टू" पर आप भी कुछ कहिये। सच तो ये है मैं अधिकांशतया विवादित मुद्दों पर बोलने और लिखने से बचने का प्रयत्न करती रही हूं। कारण..एक अंतहीन-सी बहस शुरू हो जाती है  जिसका कभी कोई स्पष्ट और ठोस निष्कर्ष नहीं निकल पाता।
फिर भी इतना कहूँगी कि किसी भी स्त्री का, किसी भी परिस्थिति में अपने साथ दुराचार या दुर्व्यवहार होने पर उसका उस वक़्त मौन रह जाना या प्रतिरोध न करना उसकी दो स्थितियों को दर्शाता है। या तो वह निजी स्वार्थ के वश है या फिर किसी कारण विवश है। जिसकी साक्षी वह स्वयम होती है। अतः "मी टू" के दायरे में कौन आता है और कौन इसके अधिकारों के उपयोग करने का अधिकारी है। यह तो कानून ही तय कर सकता है। क्योंकि हर पुरुष बुरा नहीं होता और हर स्त्री विवश नहीं होती।
आप सहमत या असहमत होने का अधिकार रखते हैं।
पुराने ज़ख़्म उघाड़े जा रहे हैं
कई पापी पछाड़े जा रहे हैं
कुदाली हाथ मे "मी टू" की लेकर
गड़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं
©कविता"किरण

Monday, October 29, 2018

ओ हेलो !!! . .मी टू पर एक नज़्म


"लड़कों से"

ओ हैलो!!!

लड़की अगर हंस के बोल दी
तो क्या समझते हो
तुम्हारे जाल में फंस गयी ??

पहले डिनर
फिर पिक्चर
और फिर.....

क्या 
समझते क्या हो तुम 
अपने आपको हुम्म

तुम्हें क्या लगता है..?
लड़कियां बस 
यूँ ही हैं..!?

जो तुम्हारे
स्टाइलिश गेट-अप
फंकी हेयर स्टाइल
भरे हुए वॉलेट और
क्रेडिट कार्ड्स देखकर
इम्प्रेस हो जाएँगी..?

और तुम्हारे एक इशारे पर 
तुम्हारी महंगी कार में 
तुम्हारे बगल वाली सीट पर
आकर बैठ जाएँगी?

सुनो
अगर सचमुच 
तुम ऐसा सोचते हो न
तो अब बदल दो
अपनी सोच को

क्योंकि
आधुनिक दिखने वाली
हर कामकाजी लड़की
ओपन माइंडेड या
ईज़ी अवेलेबल नहीं होती

वो करती है कोशिश केवल
ज़माने के साथ चलने की
ख़ुद को बदलने की
इक्कीसवीं सदी के साँचे में
ढलने की

क्योंकि
उसके भी कुछ सपने हैं
कुछ अपने हैं
जिनके सामने वो खुद को
साबित करना चाहती है

दिखाना चाहती है कि
वो किसी मामले में लड़कों से
कम नहीं हैं
और रखती है अपना एक 
अलग अस्तित्व

अगर सच में तुमको अपने
लड़के होने पर गर्व है न!
तो अपना दिल बड़ा और 
दिमाग़ खुला रक्खो

लड़की के सच्चे दोस्त बनो
उसकी इज़्ज़त करो
उसे अपनी ख़ुद की पहचान बनाने में
उसकी मदद करो

दिलाओ सुरक्षा का
एक ऐसा एहसास
जिसके लिए उसे हमेशा से
डराया जाता रहा है
सावधान किया जाता रहा है

उसे महसूस करने दो
खुली हवाओं की ताज़गी
भर लेने दो अपने भीतर
एक विश्वास
उड़ने दो बेख़ौफ़नआकाश में 
एक आज़ाद परिन्दे की तरह

क्यूंकि हर लड़की के
कुछ सपने होते हैं
और होते हैं कुछ अपने 

जिनके सामने वो 
साबित करना चाहती है खुद को
अपने होने को !!!
 -कविता "किरण"

Monday, October 22, 2018

एक ग़ज़ल समआत फरमाएँ-






जाने क्या कुछ नहीं कहा मुझको
वो समझता है जाने क्या मुझको

उसकी नज़रें अजब तराजू हैं
दोनों पलड़ों में है रखा मुझको

हर मरज की दवा थी जिसके पास

दे गया दर्द का पता मुझको

यक ब यक आज मेरा साया ही
धूप में छोड़ चल दिया मुझको

हर किसी से उलझती रहती हूं
इन दिनों जाने क्या हुआ मुझको

मैँ "किरण" तीरग़ी की ख़्वाहिश हूं
आज ही ये पता चला मुझको

©-कविता "किरण"


Friday, June 15, 2018

हमारे हाथ में कुछ आईने है



मित्रो आज एक लम्बे अरसे बाद आप सबसे मुखातिब हो रही हूँ अपनी इस बेहद मक़बूल रचना के साथ -
ग़ज़ल ( "कुछ तो है" प्रकाशित संग्रह से )




सभी चेहरा छुपाते फिर रहे हैं
हमारे हाथ में कुछ आईने है

खिलाडी तुम पुराने ही सही पर
हमारे पैंतरे बिलकुल नए हैं

अभी लब पर लिए हैं प्यास लेकिन
कभी हम भी तो इक दरिया रहे हैं

हमारा दिल है वो तनहा मुसाफिर
कि जिसके साथ ग़म के काफिले हैं

निगाहे -तीर से तल्ख़े -ज़बाँ तक
निशाने हम पे सब साधे गए हैं

मुहब्बत की नज़र से इनको देखो
जो क़तरे हैं कभी दरिया रहे हैं

कोई मुश्किल इन्हें कब तोड़ पाई
हमारे हौसले ज़िद्दी बड़े हैं

हमारी मौत का ज़िंदा हैं सामां
तुम्हारी आँख के जो मयकदे है

कलेजे में हुई महसूस ठंडक
तुम्हारे लफ्ज़ या ओले पड़े हैं

"किरण" जो दिल के हैं काले वही बस
तरक्की देखकर तेरी जले हैं

©कविता "किरण"