Friday, November 2, 2018

"मी टू" पर एक विचार


"मी टू"
-----------
मुझसे किसी ने कहा आप एक जागरूक एवम ज़िम्मेदार महिला होने के साथ-साथ एक कलमकारा भी हैं। इस नाते "मी टू" पर आप भी कुछ कहिये। सच तो ये है मैं अधिकांशतया विवादित मुद्दों पर बोलने और लिखने से बचने का प्रयत्न करती रही हूं। कारण..एक अंतहीन-सी बहस शुरू हो जाती है  जिसका कभी कोई स्पष्ट और ठोस निष्कर्ष नहीं निकल पाता।
फिर भी इतना कहूँगी कि किसी भी स्त्री का, किसी भी परिस्थिति में अपने साथ दुराचार या दुर्व्यवहार होने पर उसका उस वक़्त मौन रह जाना या प्रतिरोध न करना उसकी दो स्थितियों को दर्शाता है। या तो वह निजी स्वार्थ के वश है या फिर किसी कारण विवश है। जिसकी साक्षी वह स्वयम होती है। अतः "मी टू" के दायरे में कौन आता है और कौन इसके अधिकारों के उपयोग करने का अधिकारी है। यह तो कानून ही तय कर सकता है। क्योंकि हर पुरुष बुरा नहीं होता और हर स्त्री विवश नहीं होती।
आप सहमत या असहमत होने का अधिकार रखते हैं।
पुराने ज़ख़्म उघाड़े जा रहे हैं
कई पापी पछाड़े जा रहे हैं
कुदाली हाथ मे "मी टू" की लेकर
गड़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं
©कविता"किरण

6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-11-2018) को "परिभाषायें बदल देनी चाहियें" (चर्चा अंक-3145) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    करवाचौथ की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. पुराने ज़ख़्म उघाड़े जा रहे हैं
    कई पापी पछाड़े जा रहे हैं
    कुदाली हाथ मे "मी टू" की लेकर
    गड़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं
    हौसला मत छीनो यारों #Meetoo से ,

    ये अलाव बरसों से सुलगाये हुए हैं। अच्छी अवधारणा है डॉ.
    कविता किरण जी की।
    blogpaksh.blogspot.com
    blogpaksh2015.blogspot.com
    veeruji05.blogspot.com

    ReplyDelete
  3. piri post ek baar fir se padhiye aaderniya..mera tatpry hai gehun ke sath ghun na pis jaye..jo genuine hain wo mahilayen deserve karti hain mee too ke rights.

    ReplyDelete