"लड़कों से"
ओ हैलो!!!
लड़की अगर हंस के बोल दी
तो क्या समझते हो
तुम्हारे जाल में फंस गयी ??
पहले डिनर
फिर पिक्चर
और फिर.....
क्या
समझते क्या हो तुम
अपने आपको हुम्म
तुम्हें क्या लगता है..?
लड़कियां बस
यूँ ही हैं..!?
जो तुम्हारे
स्टाइलिश गेट-अप
फंकी हेयर स्टाइल
भरे हुए वॉलेट और
क्रेडिट कार्ड्स देखकर
इम्प्रेस हो जाएँगी..?
और तुम्हारे एक इशारे पर
तुम्हारी महंगी कार में
तुम्हारे बगल वाली सीट पर
आकर बैठ जाएँगी?
सुनो
अगर सचमुच
तुम ऐसा सोचते हो न
तो अब बदल दो
अपनी सोच को
क्योंकि
आधुनिक दिखने वाली
हर कामकाजी लड़की
ओपन माइंडेड या
ईज़ी अवेलेबल नहीं होती
वो करती है कोशिश केवल
ज़माने के साथ चलने की
ख़ुद को बदलने की
इक्कीसवीं सदी के साँचे में
ढलने की
क्योंकि
उसके भी कुछ सपने हैं
कुछ अपने हैं
जिनके सामने वो खुद को
साबित करना चाहती है
दिखाना चाहती है कि
वो किसी मामले में लड़कों से
कम नहीं हैं
और रखती है अपना एक
अलग अस्तित्व
अगर सच में तुमको अपने
लड़के होने पर गर्व है न!
तो अपना दिल बड़ा और
दिमाग़ खुला रक्खो
लड़की के सच्चे दोस्त बनो
उसकी इज़्ज़त करो
उसे अपनी ख़ुद की पहचान बनाने में
उसकी मदद करो
दिलाओ सुरक्षा का
एक ऐसा एहसास
जिसके लिए उसे हमेशा से
डराया जाता रहा है
सावधान किया जाता रहा है
उसे महसूस करने दो
खुली हवाओं की ताज़गी
भर लेने दो अपने भीतर
एक विश्वास
उड़ने दो बेख़ौफ़नआकाश में
एक आज़ाद परिन्दे की तरह
क्यूंकि हर लड़की के
कुछ सपने होते हैं
और होते हैं कुछ अपने
जिनके सामने वो
साबित करना चाहती है खुद को
अपने होने को !!!
-कविता "किरण"
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (31-10-2018) को "मंदिर तो बना लें पर दंगों से डर लगता है" (चर्चा अंक-3141) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
हार्दिक आभार आदरणीया💐
Deleteलड़कियों की मनोदशा को बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया हैं आपने,कविता दी।
ReplyDeleteशुक्रिया ज्योति जी💐
Deleteएकदम समयानुसार ब्लॉग पोस्ट लिखाहै आपने।
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