Thursday, November 4, 2010

दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...


होली और दीवाली पर तो आते-जाते रहा करें
कम से कम त्योहारों पर हम इक दूजे से मिला करें

बारह महीनों में इक दिन आता है ये शुभ दिन हम आज
तन के, मन के, धन के सारे रिश्तों का हक अदा करें

दुःख तो जीवन का हिस्सा है दुःख का सोग मनाना क्या
मातम के मौसम को हम मन में आने से मना करें

काल-चक्र में कहीं खो गये कुछ अपने, कुछ अपनापन
दीपों कि जगमग में उन बिछड़े नातों का पता करें

जाने
कितने क़र्ज़ चढ़ाये और जताया कभी नहीं
हम जिसकी शाखें हैं उस बरगद को पानी दिया करें

क्या हो कभी-कभी जो दरिया जाये प्यासे के पास
बूंदे - सागर बैठ पुरानी यादें ताज़ा किया करें

चलो गिरा दें दीवारें अब अहंकार कि अंतस से
गैर भी अपने बन जायेंगे मन से 'मैं' को विदा करें

घोर तिमिर से लड़ते नन्हे दीपक से ये बोल 'किरण'
महलों से मोहलत लेकर झोपड़ियों में भी जला करें
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डॉ कविता'किरण'