Friday, July 30, 2010

छुपके सिरहाने में रोते हैं , लोग दीवाने क्यों होते हैं



छुपके सिरहाने में रोते हैं
लोग दीवाने क्यों होते हैं

हर गहरी साजिश के पीछे
दोस्त पुराने क्यों होते हैं

बन गये दिल पर बोझ जो ऐसे
साथ निभाने क्यों होते हैं

हर युग में दिल के शीशे को
पत्थर खाने क्यों होते हैं

जब भी वक़्त बुरा आता है
अश्क बहाने क्यों होते हैं

जो रंजो-गम नाप पायें
वो पैमाने क्यों होते हैं

अश्कों से तर आँख हो फिर भी
लब मुस्काने क्यों होते हैं

'किरण' तेरी तिरछी नज़रों के
हम ही निशाने क्यों होते हैं
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डॉ कविता'किरण'

Tuesday, July 20, 2010

'दर्द'! तुझको पनाह देने को ......


'दर्द'!
तुझको
पनाह
देने को
एक दिल था
उसे भी दे डाला
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डॉ कविता'किरण'


Sunday, July 4, 2010

चट्टानों पर जब पानी बरसा होगा




चट्टानों पर जब पानी बरसा होगा
मिटटी का दामन कितना तरसा होगा

सागर भरकर भी ना प्यासी रह जाऊं
गागर के भीतर कोई डर-सा होगा

बादल सोच रहा है अबके बारिश में
जाने कितनी बूंदों का खर्चा होगा

कब आएगा दिन जब मीठी झीलों में
रेगिस्तानों का कोई चर्चा होगा

किसने सोचा था ये जीने से पहले
इतना मुश्किल जीवन का परचा होगा

मेरे घर को आग लगाने वाले सुन
तेरा घर भी तो मेरे घर-सा होगा
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डॉ कविता"किरण"