Tuesday, July 20, 2010

'दर्द'! तुझको पनाह देने को ......


'दर्द'!
तुझको
पनाह
देने को
एक दिल था
उसे भी दे डाला
**************
डॉ कविता'किरण'


18 comments:

  1. बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा

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  2. वाह...बहुत खूब...

    अब ,
    वो दर्द
    दूसरे के
    दिल में
    पलता है ...:):)

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  3. अब दर्द दिल सहित दूसरे के दिल में पलता है ...!

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  4. 'दर्द'!
    तुझको
    पनाह देने को
    एक दिल था
    उसे भी दे डाला
    कब्रिस्तान मे
    घर नही बना करते

    बेहद उम्दा प्रस्तुति।

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  5. आपकी रचना और ब्लॉग का बदला स्वरुप अच्छा लगा...
    नीरज

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  6. बेहद ख़ूबसूरत...

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  7. यह तो अच्छी बात है..
    दर्द को पनाह क्यों कर देना चाहेगा
    अब यह तो पता करना ही होगा कि दर्द का नया ठौर-ठिकाना कहां है.
    आपकी कविता कम शब्दों के बावजूद कई फलक खोलने का काम करती है.
    आपकी कविता को लेकर तीन-चार बातें सोच रहा हूं
    फिलहाल तो इतना ही कि आपको एक शानदार रचना के लिए बधाई.

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  8. दर्द को बेघर कर दिया । अच्छी रचना ।

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  9. बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  10. बहुत उम्दा ..
    चलो अब दर्द से सामना तो नहीं होना होगा

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  11. sahyd dard ki abhvyakti isse achi ho hi nahi sakti


    'दर्द'!
    तुझको
    पनाह देने को
    एक दिल था
    उसे भी दे डाला
    **************
    डॉ कविता'किरण'


    ati sunder Di

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  12. बहुत खूब .... लाजवाब ...

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  13. वाह...............शानदार अभिव्यक्ति.....!!

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  14. कविता जी ,
    प्रणाम !
    आप के नज़र ये पंक्तियां ''' मेरे सीने में जब भी दर्द उठा लगा तुमने याद किया मुझे ''
    एक पंक्ति में बहुत कुछ कह दिया ,
    साधुवाद

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  15. Love can never grow without pain !!!!

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