चट्टानों पर जब पानी बरसा होगा
मिटटी का दामन कितना तरसा होगा
सागर भरकर भी ना प्यासी रह जाऊं
गागर के भीतर कोई डर-सा होगा
बादल सोच रहा है अबके बारिश में
जाने कितनी बूंदों का खर्चा होगा
कब आएगा दिन जब मीठी झीलों में
रेगिस्तानों का कोई चर्चा होगा
किसने सोचा था ये जीने से पहले
इतना मुश्किल जीवन का परचा होगा
मेरे घर को आग लगाने वाले सुन
तेरा घर भी तो मेरे घर-सा होगा
****************
डॉ कविता"किरण"
मिटटी का दामन कितना तरसा होगा
सागर भरकर भी ना प्यासी रह जाऊं
गागर के भीतर कोई डर-सा होगा
बादल सोच रहा है अबके बारिश में
जाने कितनी बूंदों का खर्चा होगा
कब आएगा दिन जब मीठी झीलों में
रेगिस्तानों का कोई चर्चा होगा
किसने सोचा था ये जीने से पहले
इतना मुश्किल जीवन का परचा होगा
मेरे घर को आग लगाने वाले सुन
तेरा घर भी तो मेरे घर-सा होगा
****************
डॉ कविता"किरण"
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है ... हर शेर कुछ नयी कहानी बोलता है ...
ReplyDeleteबेहतरीन्…………लाजवाब गज़ल्।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteकविताजी, यूँ तो इस खूबसूरत गजल का हरेक शेर नायाब है, पर इन दो शेरों में तो आपने गजब ही कर डाला है-
ReplyDeleteचट्टानों पर जब पानी बरसा होगा
मिट्टी का दामन कितना तरसा होगा
मेरे घर को आग लगाने वाले सुन
तेरा घर भी तो मेरे घर-सा होगा
इन शेरों का हर एक लफ्ज इस प्रकार जडा गया है, जैसे सुनार
आभूषण में रत्न जडता है। बधाई और शुभकामनायें।
वाह बहुत सुंदर नज़्म. पहली बार आपके ब्लॉग पर आई आपको पढ़ना बहुत अच्छा लगा. कोशिश रहेगी की आपको पढ़ती रहू.आप बहुत अच्छा लिखती हैं.
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना....... बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteसद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
बादल सोच रहा है, अबके बारिश में
ReplyDeleteजाने कितनी बूंदों का खर्चा होगा
ग़ज़ल पढ़ते-पढ़ते नज़र बार-बार इसी शेर पर
आ कर ठहर जाती है ....
बहुत उम्दा ख़याल लफ़्ज़ों में ढाला है ...वाह !
मुबारकबाद .
कविता जी बहुत शशक्त ग़ज़ल कही है आपने...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
कब आएगा दिन जब मीठी झीलों में
ReplyDeleteरेगिस्तानों का कोई चर्चा होगाकविता जी ,
प्रणाम !
बेहतरीन लगी ग़ज़ल , हर शेर अच्छा है मगर मेरी पसंद का शेर आप कि नज़र किया है ,
साधुवाद
आप सभी की सकारात्मक टिप्पणियों का बहुत बहुत शुक्रिया .कृपया आगे भी आते रहें और हौसला बढ़ाते रहें
ReplyDeleteकिसने सोचा था ये जीने से पहले
ReplyDeleteइतना मुश्किल जीवन का परचा होगा...
behad achchha laga ye to....
jeevan ka parcha wakai bada mushkil prateet hota hai.
Sundar lekhan
"किसने सोचा था ये जीने से पहले
ReplyDeleteइतना मुश्किल जीवन का परचा होगा
मेरे घर को आग लगाने वाले सुन
तेरा घर भी तो मेरे घर-सा होगा"
आभार
बहुत सुंदर ... अद्भुद ...
ReplyDeleteek dum aachi he kavita ji
ReplyDeleteaap ka jawab nahi
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल ....
ReplyDeleteलाजवाब !!!
आपकी ग़ज़लें बहुत प्रभावशाली होतीं है । एक सुझाव है : जैसा कि मेरी जानकारी है यदि ग़ज़ल के मतले में काफ़िया बरसा और तरसा आ रहा है तो पूरी गज़ल में भी उससे मिलते जुलते काफ़िए जैसे फ़रसा, डर सा आने चाहिए , उसमें परचा या खर्चा दोषपूर्ण माने जाते हैं
ReplyDeletesunder avm prashansneey..
ReplyDeletebahut khubsurat poem hai aapki vah!!
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