Wednesday, March 31, 2010

ज़ुल्फ़ जब खुल के बिखरती है मेरे शाने पर zulf jab khulke bikharti hai mere shane per...

ज़ुल्फ़ जब खुल के बिखरती  है मेरे शाने पर
बिजलियाँ टूट के गिरती हैं इस ज़माने पर

हुस्न ने खाई क़सम है नहीं पिघलने की
इश्क आमादा है इस बर्फ को गलाने पर

ताक में बैठे हैं इन्सान और फ़रिश्ते भी 
सबकी नज़रें हैं टिकी रूप के खजाने पर

देखकर मुझको वो आदम से बन गया शायर 
जाने क्या-क्या नहीं गुजरी मेरे दीवाने पर

मुन्तजिर हैं ये नज़ारे नज़र मिला लूँ पर
शर्म का बोझ है पलकों के शामियाने पर

लोग समझे कि'किरण'तू है कोई मयखाना 
कोई जाता ही नहीं अब शराबखाने पर
*************
डॉ.कविता'किरण' 
('तुम्ही कुछ कहो ना!' में से)

Monday, March 22, 2010

शहीद दिवस पर सभी अमर शहीदों को शत शत नमन!


है अब तो हर तरफ इक आग का आलम कहाँ जाएँ 
बना  है  आदमी मानव से मानव बम कहाँ जाएँ 
कहीं बारूद की बस्ती कहीं दहशत क़ि दुनिया है  
'किरण' इंसानियत का घुट रहा है दम कहाँ जाएँ 
******************

ज़हन में क्यों  भरा बारूद क्यों हाथों में खंज़र हैं 
 यहाँ चारों तरफ क्योंकर बिछे लाशों के मंज़र हैं 
क्यों मिटटी के लिए लड़ते हैं  मिटटी से बने पुतले
क्यों नफरत की सुलगती तीलियाँ सीनों के अंदर  हैं  
******************

करें हर घर को फुलवारी हर इक कूचा चमन कर लें
बहारों से सजा गुलशन चलो  अपना वतन कर लें
लहू देकर जिन्होंने अपना आज़ादी की कीमत दी
'किरण' हम आज उन सारे शहीदों को नमन कर लें
************डॉ कविता'किरण'



Monday, March 15, 2010

मेरी आँखों में अगर झांकोगे जल जाओगे



 ज़ख्म ऐसा जिसे खाने को मचल जाओगे
इश्क की राहगुज़र पे न संभल पाओगे 
          
मैं अँधेरा सही सूरज को है देखा बरसों
मेरी आँखों में अगर झांकोगे जल जाओगे


ye sher mere pasandeeda gazal gayak gulam ali sahab ke liye
मैंने माना कि हो पहुंचे हुए फनकार मगर
एक दिन मेरी  किताबों से ग़ज़ल गाओगे

इतना कमसिन है मेरे नगमों का ये ताजमहल
तुम भी देखोगे तो दोस्त! मचल जाओगे

'किरण' चाँद से कह दो कि इतरो इतना 
रात-भर चमकोगे कल सुबह तो ढल जाओगे
          ************* डॉ कविता'किरण