Thursday, November 26, 2009

इस कदर कोई सताए तो सही



गैर को ही पर सुनाये तो सही
शेर मेरे गुनगुनाये तो सही

जी नहीं हमसे रकीबों से सही
आपने रिश्ते निभाए तो सही

है मिली किस बात की हमको सज़ा
ये कोई हमको बताये तो सही

आँख बेशक हो गई नम फ़िर भी हम
जख्म खाकर मुस्कुराये तो सही

याद आए हर घड़ी अल्लाह हमें
इस कदर कोई सताए तो सही

इन अंधेरों में फ़ना होकर "किरण"
हम किसीके काम आए तो सही
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डॉ कविता"किरण"


Wednesday, November 18, 2009

कवियत्री कविता'किरण' के गीत संग्रह ' ये तो केवल प्यार है' का विमोचन


गत १६ नवम्बर को हिंदी अकादमी दिल्ली के उपाध्यक्ष प्रो.श्री अशोक चक्रधर की संस्था 'जय जैवन्ती' की और से फालना की कवियत्री डॉ कविता'किरण' के हिंदी गीत संग्रह 'ये तो केवल प्यार है' का विमोचन दिल्ली के इंडियन हेबिटेट सेंटर के गुलमोहर सभागार में आमंत्रित विद्वान साहित्यकारों और मीडिया कर्मियों की उपस्थिति में किया गया.
पुस्तक का विमोचन एन डी टी वी के श्री पंकज पचौरी,मुख्य अतिथि श्री रोमेश शर्मा और अशोक चक्रधेर जी के द्वारा किया गया.विमोचन के पश्चात् कवियत्री कविता'किरण'ने उक्त संग्रह में से कुछ गीतों का पाठ भी किया जिसकी सभी ने मुक्त कंठ से सराहना की।
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Thursday, November 12, 2009

जिंदगी को जुबान दे देंगे

कवयत्री डॉ कविता 'किरण 'उज्जैन में प्रसिद्द 'टेपा सम्मान ' लेते हुए

ग़ज़ल

जिंदगी
को
जुबान दे देंगे
धडकनों की कमान दे देंगे

हम तो मालिक हैं अपनी मर्ज़ी के
जी में आया तो जान दे देंगे

रखते हैं वो असर दुआओं में
हौसले को उड़ान दे देंगे

जो है सहमी पड़ी समंदर में
उस लहर को उफान दे देंगे

जिनको ज़र्रा नही मयस्सर है
उनको पूरा जहान दे देंगे

करके मस्जिद में आरती-पूजा
मंदिरों से अजान दे देंगे

मौत आती 'किरण' है जाए
तेरे हक में बयान दे देंगे
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डॉ.कविता'किरण'


Monday, November 9, 2009

कवियत्री डॉ. कविता'किरण'इलाहबाद में 'सर्वश्रेष्ठ कवयित्री' का अवार्ड ग्रहण करते हुए

ले जाओ अपना दिल भी अगर छोड़ गए हो!

'हुडदंग २००९'इलाहबाद होली के अवसर पर आयोजित कवि सम्मलेन के मंच पर

गज़ल

वापस लौटने की ख़बर छोड़ गए हो
मैंने सुना है तुम ये शहर छोड़ गए हो

दीवाने लोग मेरी कलम चूम रहे हैं
तुम मेरी ग़ज़ल में वो असर छोड़ गए हो

सारा ज़माना तुमको मुझ में ढूंढ रहा है
तुम हो की ख़ुद को जाने किधर छोड़ गए हो

दामन चुरानेवाले मुझको ये तो दे बता
क्यों मेरे पीछे अपनी नज़र छोड़ गए हो

मंजिल की है ख़बर रास्तों का है पता
ये मेरे लिए कैसा सफर छोड़ गए हो

ले तो गए हो जान-जिगर साथ 'किरण'
ले जाओ अपना दिल भी अगर छोड़ गए हो
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डॉ कविता'किरण'

Tuesday, November 3, 2009

वक्त लिखता है वो नगमें


धूप है, बरसात है, और हाथ में छाता नहीं
दिल मेरा इस हाल में भी अब तो घबराता नहीं

मुश्किलें जिसमें न हों वो जिंदगी क्या जिंदगी
राह हो आसां तो चलने का मज़ा आता नहीं

चाहनेवालों में शिद्दत की मुहब्बत थी मगर
जिस्म से रिश्ता रहा, था रूह से नाता नहीं

मांगते देखा है सबको आस्मां से कुछ न कुछ
दीन हैं सारे यहाँ, कोई भी तो दाता नहीं

पा लिया वो सब कतई जिसकी नहीं उम्मीद थी
दिल जो पाना चाहता है बस वही पाता नहीं

जिंदगी अपनी तरह कब कौन जी पाया 'किरण'
वक्त लिखता है वो नगमें दिल जिसे गाता नहीं
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डॉ
कविता'किरण'