Friday, February 22, 2013

मुहब्बत का ज़माना आ गया है ....

मुहब्बत का ज़माना आ गया है 
गुलों को मुस्कुराना आ गया है 
नयी शाखों  पे देखो आज फिर वो 
नज़र पंछी पुराना आ गया है  

जुनूं को मिल गयी है इक तसल्ली
वफाओं का खज़ाना आ गया है

उन्हें भी आ गया नींदे उडाना
हमें भी दिल चुराना आ गया है

छुपाया था जिसे हमने हमी से
लबों पर वो फ़साना आ गया है

नज़र से पी रहे हैं नूर उसका
संभलकर लडखडाना आ गया है

मुहब्बत तो सभी करते हैं लेकिन 
 

हमें करके निभाना आ गया है

हमें तो मिल गया महबूब का दर
हमारा तो ठिकाना  आ गया है

हम अपने आईने के रु-ब-रु हैं
निशाने पर निशान आ गया है

अँधेरा है घना हर और तो क्या
"किरण"को झिलमिलाना आ गया है
 -डॉ कविता"किरण"