Wednesday, August 26, 2009

जिंदगी को इक नया-सा मोड़ दे


जिंदगी को इक नया-सा मोड़ दे
अपनी कश्ती को भंवर में छोड़ दे

हौसले की इक नई तहरीर लिख
खौफ की सारी हदों को तोड़ दे

फ़िर किसी इज़हार को स्वीकार कर
इक नए रिश्ते से रिश्ता जोड़ दे


जिसका हासिल हार केवल हार है
क्यों भला जीवन को ऐसी होड़ दे


सब्र के प्याले की मानिंद जा छलक
अपनी सोई रूह को झिंझोड़ दे

जिंदगी के मस अलों का ऐ 'किरण'
दे कोई अब हल मगर बेजोड़ दे
--------------------------------डॉ.कविता'किरण'