कब तलक काबा ओ काशी जायेगा
क्या कभी खुद की तरफ भी जायेगा?
हमसफ़र होगी फ़क़त नेकी_बदी
साथ में पंडित ना काजी जायेगा
एक हद तक इम्तिहाँ देने के बाद
सब्र का प्याला छलक ही जायेगा
क्यों मसीहा की लगाये हो उम्मीद
है न कोई ज़ख्म जो सी जायेगा
गम न कर दम तोड़ते मेरे जिगर
दर्द के छूते ही तू जी जायेगा
इन् हरे पेड़ों से अमृत छीनकर
सोचते हो वो ज़हर पी जायेगा?
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डॉ कविता'किरण'
क्या कभी खुद की तरफ भी जायेगा?
हमसफ़र होगी फ़क़त नेकी_बदी
साथ में पंडित ना काजी जायेगा
एक हद तक इम्तिहाँ देने के बाद
सब्र का प्याला छलक ही जायेगा
क्यों मसीहा की लगाये हो उम्मीद
है न कोई ज़ख्म जो सी जायेगा
गम न कर दम तोड़ते मेरे जिगर
दर्द के छूते ही तू जी जायेगा
इन् हरे पेड़ों से अमृत छीनकर
सोचते हो वो ज़हर पी जायेगा?
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डॉ कविता'किरण'