Friday, December 21, 2012

उस दिन के लिए तैयार रहना..तुम!!!!




तुम पूरी कोशिश करते हो
मेरे दिल को दुखाने की
मुझे सताने की
रुलाने की
और इसमें पूरी तरह कामयाब भी होते हो---
सुनो!
मेरे आंसू तुम्हे
बहुत सुकून देते हैं ना!
तो लो..
आज जी भर के सता लो मुझे
देखना चाहते हो ना !
मेरी सहनशक्ति की सीमा!!
तो लो..
आज जी भर के
आजमा लो मुझे
और मेरे सब्र को
पर हाँ!
फिर उस दिन के लिए तैयार रहना
कि जिस दिन 
मेरे सब्र का बाँध टूटेगा
और बहा ले जायेगा तुम्हे
तुम्हारे अहंकार सहित 

इतनी दूर तक--
कि जहाँ तुम
शेष नहीं बचोगे 

मुझे सताने के लिए
मेरा दिल दुखाने के लिए
मुझे आजमाने के लिए
पड़े होंगे पछतावे और 
शर्मिंदगी की रेत पर कहीं
अपने झूठे दम्भ्साहित
  एकदम अकेले--
उस दिन के लिए
तैयार रहना--
तुम !-
----डॉ कविता"किरण"---


Sunday, November 11, 2012

बेवफा बावफा हुआ कैसे..........


बेवफा बावफा हुआ कैसे
ये करिश्मा हुआ भला कैसे

वो जो खुद का सगा न हो पाया
हो गया है मेरा सगा कैसे

जब नज़रिए में नुक्स हो साहिब
तो नज़र आएगा ख़ुदा कैसे

सो गया हो ज़मीर ही जिसका
वो किसी का करे भला कैसे

तूने बख्शा नहीं किसी को जब
माफ़ होगी तेरी ख़ता कैसे

जब कफस में नहीं  था दरवाज़ा
फिर परिंदा  हुआ रिहा कैसे

कितने हैरान हैं महल वाले
कोई मुफ़लिस यहाँ हंसा कैसे

चाँद मेहमान है अंधेरों का
चुप रहेगी 'किरण' बता कैसे
 कविता'किरण'

Friday, September 28, 2012

मुक़द्दर से न अब शिकवा करेंगे........

मुक़द्दर से  न अब शिकवा  करेंगे
न छुप छुपके सनम  रोया करेंगे 


दयारे-यार में लेंगे पनाहें
दरे-मह्बूब पर सजदा करेंगे


हमीं ने ग़र शुरू की है कहानी
हमीं फिर ख़त्म ये किस्सा करेंगे 


जिसे ढूँढा ज़माने भर में हमने 
कहीं वो मिल गया तो क्या करेंगे  

कहा किसने ये तुमसे उम्र-भर हम
तुम्हारी याद में तडपा करेंगे

 
न होगा हमसे अब ज़िक्रे-मुहब्बत  
वफ़ा के नाम  से तौबा करेंगे

 खता हमसे हुयी आखिर ये कैसे 
अकेले बैठकर सोचा करेंगे

कि इस तर्के-तआलुक़ का सितमगर
किसी से भी नहीं चर्चा करेंगे

हयाते- राह में सोचा नहीं था
हमारे पाँव भी धोखा करेंगे

ज़माना दे'किरण'जिसकी मिसालें
क़लम में वो हुनर पैदा करेंगे

-कविता'किरण'

Friday, July 6, 2012

सितारे टूटकर गिरना हमें अच्छा नहीं लगता ....

सितारे टूटकर  गिरना हमें  अच्छा नहीं लगता 
गुलों का शाख से झरना हमें अच्छा नहीं लगता 

सफ़र इस जिंदगी का यूँ  तो है  अँधा सफ़र लेकिन  
उमीदें साथ हैं  वरना  हमें अच्छा नहीं लगता 

थे ताज़ा  जब तलक हमको  किसी की याद आती थी  
पुराने  ज़ख्म का भरना हमें अच्छा नहीं लगता 

हमारा नाम भी शामिल हो अब बेखौफ बन्दों में 
जहाँ  से इस  कदर डरना हमें अच्छा नहीं लगता 

मुहब्बत हम करें तेरी इबादत  सोचना भी मत 
तुम्हारा ज़िक्र भी  करना हमें अच्छा नहीं लगता 

भला हो  या बुरा अब चाहे जो होना है हो जाये 
''किरण" ये रोज़ का मरना  हमें अच्छा नहीं लगता
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डॉ कविता 'किरण''


Sunday, May 20, 2012

मिलता नहीं है कोई भी गमख्वार की तरह.....

मिलता नहीं है कोई भी गमख्वार की तरह
पेश आ रहे हैं यार भी अय्यार की तरह

मुजरिम तुम्ही नहीं हो फ़क़त जुर्म-ए-इश्क के
हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह

वादों का लेन-देन है, सौदा है, शर्त है
मिलता कहाँ है प्यार भी अब प्यार की तरह

ता-उम्र मुन्तज़िर ही रहे हम बहार के
इस बार भी न आई वो हर बार की तरह

अहले-जुनूं कहें के उन्हें संग-दिल कहें
मातम मना रहे हैं जो त्यौहार की तरह

यादों के रोज़गार से जब से मिली निजात
हर रोज़ हमको लगता है  इतवार की तरह

पैकर ग़ज़ल का अब तो 'किरण' हम को कर अता
बिखरे हैं तेरे जेहन में अश'आर की तरह
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-कविता'किरण'.


Tuesday, May 1, 2012

मत समझिये कि मैं औरत हूँ, नशा है मुझमें....

मत समझिये कि मैं औरत हूँ, नशा है मुझमें
माँ भी हूँ, बहन भी, बेटी भी, दुआ है मुझमे

हुस्न है, रंग है, खुशबू है, अदा है मुझमे
मैं मुहब्बत हूँ, इबादत हूँ, वफ़ा है मुझमे

कितनी आसानी से कहते हो कि क्या है मुझमें
ज़ब्त है, सब्र-सदाक़त है, अना है मुझमें

मैं फ़क़त जिस्म नहीं हूँ कि फ़ना हो जाऊं
आग है , पानी है, मिटटी है, हवा है मुझमे

इक ये दुनिया जो मुहब्बत में बिछी जाये है
एक वो शख्स जो मुझसे ही खफा है मुझमे

अपनी नज़रों में ही क़द आज बढ़ा है अपना
जाने कैसा ये बदल आज हुआ है मुझमें

दुश्मनों में भी मेरा ज़िक्र ‘किरण’ है अक्सर
बात कोई तो ज़माने से जुदा है मुझमें 
 ********************************Kavita"kiran"

Sunday, April 1, 2012

कलेजा मुंह को ए सरकार आया.......


कलेजा मुंह को ए सरकार आया
है मुट्ठी में दिले-बेज़ार आया

हुआ इस दौर में दुश्वार जीना
ये दिल सजदे में साँसे हार आया

मेरे इज़हार के बदले में या रब!
तेरी जानिब से बस इन्कार आया

ख़ता मैं हूँ ख़ुदा तू है मुआफी
तेरे दम से ही बेड़ा पार आया

जिन्हें परहेज था मेरे सुख़न से
उन्हें ही आज मुझ पर प्यार आया

"किरण" जो भी गया तुझको मिटाने
वो जानो-दिल तुझ ही पे वार आया
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कविता'किरण'

Thursday, March 1, 2012

वत्सला से वज्र में ढल जाऊंगी, मैं नहीं हिमकण हूँ जो गल जाऊंगी....


वत्सला से वज्र में ढल जाऊंगी
मैं नहीं हिमकण हूँ जो गल जाऊंगी
दंभ के आकाश को छल जाऊँगी
मैं नहीं हिमकण हूँ जो गल जाऊँगी

पतझरों की पीर की पाती सही
वेदना के वंश की थाती सही
कल मेरा स्वागत करेगा सूर्योदय
आज दीपक की बुझी बाती सही

फिर स्वयं के ताप से जल जाऊँगी
मैं नही हिमकण हूँ जो गल जाऊँगी

मन मरुस्थल नेह निर्जल ताल है
रूप दिनकर का हुआ विकराल है
है विकल विश्वास विचलित प्राण हैं
कामना की देह सूखी डाल है

नीर-निश्चय से पुनः फल जाऊँगी

मैं नहीं हिमकण हूँ जो गल जाऊँगी

आत्म-बल का मै अखंडित जाप हूँ
प्रेरणा के गीत का आलाप हूँ
अपने स्वाभिमान की हूँ सारथी
स्वयंसिद्धा अपना परिचय आप हूँ

पुरुष की प्रभुताओं को खल जाऊँगी
मैं नहीं हिमकण हूँ जो गल जाऊँगी

सभ्यता मुझसे है मैं हूँ संस्कृति
आत्म गौरव की हूँ अनुपम आकृति
अपनी आभा का मुझे आभास है
लय हूँ जीवन की समय की हूँ गति

पीर के आँचल में भी पल जाऊँगी
मैं नहीं हिमकण हूँ जो गल जाऊँगी

तज के अब नारीत्व के संत्रास को
मैं रचूँगी इक नए इतिहास को
एक मंगल भोर का आव्हान कर
प्राण में भर लूँगी हर्ष-उल्लास को

भाल पर तम के 'किरण' मल जाऊँगी
मैं नहीं हिमकण हूँ जो गल जाऊँगी
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गीत संग्रह 'ये तो केवल प्यार है' में से

Wednesday, February 1, 2012

तेरे बारे में सबसे पूछूं हूँ....


तेरे बारे में सबसे पूछूं हूँ
तू
है मुझमे तुझी को खोजूं हूँ

है नज़र तू ही तू नज़ारा भी
हर तरफ सिर्फ तुझको देखूं हूँ


मेरा चेहरा चमक उठे जानम
तेरे बारे मे जब भी सोचूं हूँ

तेरे दीदार को है बेकाबू
बडी मुश्किल से दिल को रोकू हूँ

ख़त लिखूं हूँ तुझे ख़यालों में

और खयालों में तुझको भेजू हूँ


बेख़ुदी का मेरी ये आलम है

तू कहां है तुझी से पुछूं हूँ

मुझको तुझसे ही कब मिली फुरसत
अपने बारे में कब मैं सोचूं हूँ


मौत को जी रही हूँ मैं पल पल

यूँ मज़े जिंदगी के लूटूं हूँ

मैं ‘किरण’ उसकी याद का स्वेटर

कभी खोलूं कभी समेटूं हूँ
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कविता'किरण'