Wednesday, June 9, 2010

बहुत है ख़ामोशी तुम्ही कुछ कहो ना!..




बहुत है ख़ामोशी तुम्ही कुछ कहो ना!
है हरसू उदासी तुम्ही कुछ कहो ना!

मैं पतझड़ का मौसम हूँ चुप ही रहा हूँ
ओ गुलशन के वासी! तुम्ही कुछ कहो ना!

कि ढलने को आई शबे-गम ये आधी
है बाकी ज़रा-सी तुम्ही कुछ कहो ना!

समाकर समंदर में भी रह गयी है
लहर एक प्यासी तुम्ही कुछ कहो ना!

मेरे दिल में तुम हो कहीं ये ज़माना
न ले ले तलाशी तुम्ही कुछ कहो ना!

'किरण' बुझ न जाना,गमो कि फिजां में
चली है हवा-सी तुम्ही कुछ कहो ना!
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डॉ कविता"किरण"

Tuesday, June 1, 2010

अजनबी अपना ही साया हो गया है --वर्तमान पीढ़ी पर कुछ शेर...


अजनबी अपना ही साया हो गया है
खून अपना ही पराया हो गया है

मांगता है फूल डाली से हिसाब
मुझपे क्या तेरा बकाया हो गया है

बीज बरगद में हुआ तब्दील तो
सेर भी बढ़कर सवाया हो गया है

बूँद ने सागर को शर्मिंदा किया
फिर धरा का सृजन जाया हो गया है

बात घर की घर में थी अब तक 'किरण'
राज़ अब जग पर नुमायाँ हो गया है
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डॉ कविता"किरण"