बहुत है ख़ामोशी तुम्ही कुछ कहो ना!
है हरसू उदासी तुम्ही कुछ कहो ना!
मैं पतझड़ का मौसम हूँ चुप ही रहा हूँ
ओ गुलशन के वासी! तुम्ही कुछ कहो ना!
कि ढलने को आई शबे-गम ये आधी
है बाकी ज़रा-सी तुम्ही कुछ कहो ना!
समाकर समंदर में भी रह गयी है
लहर एक प्यासी तुम्ही कुछ कहो ना!
मेरे दिल में तुम हो कहीं ये ज़माना
न ले ले तलाशी तुम्ही कुछ कहो ना!
'किरण' बुझ न जाना,गमो कि फिजां में
चली है हवा-सी तुम्ही कुछ कहो ना!
***************
डॉ कविता"किरण"
है हरसू उदासी तुम्ही कुछ कहो ना!
मैं पतझड़ का मौसम हूँ चुप ही रहा हूँ
ओ गुलशन के वासी! तुम्ही कुछ कहो ना!
कि ढलने को आई शबे-गम ये आधी
है बाकी ज़रा-सी तुम्ही कुछ कहो ना!
समाकर समंदर में भी रह गयी है
लहर एक प्यासी तुम्ही कुछ कहो ना!
मेरे दिल में तुम हो कहीं ये ज़माना
न ले ले तलाशी तुम्ही कुछ कहो ना!
'किरण' बुझ न जाना,गमो कि फिजां में
चली है हवा-सी तुम्ही कुछ कहो ना!
***************
डॉ कविता"किरण"
सम्मानीय किरण जी .
ReplyDeleteप्रणाम !
समाकर समंदर में भी रह गयी है
लहर एक प्यासी तुम्ही कुछ कहो ना!
आप की ये पंक्तियाँ बेहद सुंदर लगी ,
साधुवाद
समाकर समंदर में भी रह गयी है
ReplyDeleteलहर एक प्यासी तुम्ही कुछ कहो ना!
मेरे दिल में तुम हो कहीं ये ज़माना
न ले ले तलाशी तुम्ही कुछ कहो ना!
ख़ूबसूरत जज़्बात की कामयाब अक्कासी !
किरण जी ,एक अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारक बाद क़ुबूल करें
मेरे दिल में तुम हो कहीं ये ज़माना
ReplyDeleteन ले ले तलाशी तुम्ही कुछ कहो ना!
बहुत मासूम शेर है और निहायत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...दाद कबूल करें...
नीरज
प्रिय कविता किरण जी
ReplyDeleteनमस्कार !
माना कि दुनिया भर के मुशायरों - कवि सम्मेलनों में हज़ारों चाहने वाले आपको सुनने को बेताब रहते हैं ,
इसलिए आप लगातार मुशायरों - कवि सम्मेलनों में व्यस्त रहती हैं ।
लेकिन मोहतरमा , नेट पर भी आपके मुरीद सहरा के मुसाफ़िर की तरह
आपके ब्लॉग पर नई ग़ज़ल पढने - सुनने की प्यास लिये हुए भटकते रहते हैं ,
थोड़ी मेहरबानी उन पर भी कर दिया कीजिए ।
प्रस्तुत ग़ज़ल के लिए शुक्रिया क़ुबूल फ़रमाएं ।
बह्त उम्दा अश्आर हैं ।
इन शे'रों ने तो ज़ादू का सा असर किया है…
समाकर समंदर में भी रह गयी है
लहर एक प्यासी तुम्ही कुछ कहो ना!
मेरे दिल में तुम हो कहीं ये ज़माना
न ले ले तलाशी तुम्ही कुछ कहो ना!
तमाम दाद वाहवाही आपके नाम !
ख़ाकसार के ब्लॉग शस्वरं पर भी तशरीफ़ फ़रमाएं
तो क़िस्मत संवर जाए …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
bahut sunder Ghazal ..
ReplyDeleteकिस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
ReplyDeletebhut khoob....
ReplyDeleteKavita ji, bahut hi sundar kavita... aapaki tarah... sadhuvaad !
ReplyDeleteyun to milte hain kai dost safer ki raaho mei mager ujaale muddat mei timtimaate hain, theher gayi hai shabnam hare[green] se patte par,ruke sa gir jaaye tumhi kuchh kaho na????
ReplyDeleteआप की गजल के अशआर अच्छे लगे.बधाई स्वीकार करें.
ReplyDeleteगजल के मतला में गलती से 'खमोशी' की जगह ख़ामोशी कम्पोज हो गया है. आलम खुर्शीद
समाकर समंदर में भी रह गयी है
ReplyDeleteलहर एक प्यासी तुम्ही कुछ कहो ना!---------------------------------कविता जी आपकी पूरी रचना ही बहुत खूबसूरती से रची गयी है लेकिन इन पंक्तियों का जवाब नहीं।
कविता जी ,बहुत कोमल भावनाओं की बेहतरीन अभिव्यक्ति है आपकी इस रचना में। शुभकामनायें।
ReplyDeleteमेरे दिल में तुम हो कहीं ये ज़माना
ReplyDeleteन ले ले तलाशी तुम्ही कुछ कहो ना!
kya kavita likhi he aapne jo dil ko chu gayi he
ReplyDeletebus aise hi likh te rahiye aur hume yuhi gum bhula ne ki taakat milti he aapki kavita se
ReplyDeletePhool sookh jatay hain ek waqt k baad, log badal jatay hain ek waqt k baad
ReplyDeleteApni dosti bhi tootay gi ek waqt k baad, Laken wo waqt aayega mere marne k baad
बहुत है ख़ामोशी तुम्ही कुछ कहो ना! iss kavita ne isach mei dil ko choo liya aisa laga mano yeh apane hi mann ki baat ho bahut hi prabhavi dhang se aapne shabdo ki mala banakar prastute ki hei iss achchi kavita ke liye Kavijaji aapko bahut bahut sadhuwaad and badhai Kavita aise hi kavita likhati rahe yeh kamna hei ............
ReplyDeleteKiran Ji Namaste,
ReplyDeletePehli baar aapke blog per aaya hun sunder ghazal padne ko mili badhaai
'किरण' बुझ न जाना,गमो कि फिजां में
चली है हवा-सी तुम्ही कुछ कहो ना!
Surinder Ratti
Mumbai
shishirji. kaise hain aap? aapke comments hamesha mujhe prerna dete hain .mere blog per aane ka shukriya.aage bhi aate rahe mera housla badhate rahen.
ReplyDeleteshukriya Surinder ji aage bhi aate rahiyega.swagat hai aapka.
ReplyDeleteसॉरी.........सॉरी.......... एक्स्ट्रीमली सॉरी.... मैं देरी से आया.... क्या करूँ? आजकल टाइम ही नहीं मिल पाता है..... पर देर आयद ...दुरुस्त.... आयद.... बहुत सुंदर ग़ज़ल.... लास्ट की पंक्तियों ने दिल को छू लिया.... अबसे देरी नहीं होगी...
ReplyDeleteकि ढलने को आई शबे-गम ये आधी
ReplyDeleteहै बाकी ज़रा-सी तुम्ही कुछ कहो ना!
BAHUT KHOOB
ek shabd me kahun..jabardast, har sher khubsurat
ReplyDeleteaaj hame aapki kavita padhaneka saubhagya praapt hua. Aap itana sunder likhti hai ki hamaare paas taarif ke liye shabd nahi hai...... sirf wah.. wah.....kah kar rah jaate hai.
ReplyDeleteKavita ji, bahut hi umda rachna hai...
ReplyDeleteBahut sundar kavitayein hain aapki. Aap kavi-log dard se aashiqui kyon karte ho,dard ko aapse sunder daaman milega kahaan.....
ReplyDeletesabhi ka bahut bahut shukriya.
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