Sunday, May 20, 2012

मिलता नहीं है कोई भी गमख्वार की तरह.....

मिलता नहीं है कोई भी गमख्वार की तरह
पेश आ रहे हैं यार भी अय्यार की तरह

मुजरिम तुम्ही नहीं हो फ़क़त जुर्म-ए-इश्क के
हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह

वादों का लेन-देन है, सौदा है, शर्त है
मिलता कहाँ है प्यार भी अब प्यार की तरह

ता-उम्र मुन्तज़िर ही रहे हम बहार के
इस बार भी न आई वो हर बार की तरह

अहले-जुनूं कहें के उन्हें संग-दिल कहें
मातम मना रहे हैं जो त्यौहार की तरह

यादों के रोज़गार से जब से मिली निजात
हर रोज़ हमको लगता है  इतवार की तरह

पैकर ग़ज़ल का अब तो 'किरण' हम को कर अता
बिखरे हैं तेरे जेहन में अश'आर की तरह
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-कविता'किरण'.


Tuesday, May 1, 2012

मत समझिये कि मैं औरत हूँ, नशा है मुझमें....

मत समझिये कि मैं औरत हूँ, नशा है मुझमें
माँ भी हूँ, बहन भी, बेटी भी, दुआ है मुझमे

हुस्न है, रंग है, खुशबू है, अदा है मुझमे
मैं मुहब्बत हूँ, इबादत हूँ, वफ़ा है मुझमे

कितनी आसानी से कहते हो कि क्या है मुझमें
ज़ब्त है, सब्र-सदाक़त है, अना है मुझमें

मैं फ़क़त जिस्म नहीं हूँ कि फ़ना हो जाऊं
आग है , पानी है, मिटटी है, हवा है मुझमे

इक ये दुनिया जो मुहब्बत में बिछी जाये है
एक वो शख्स जो मुझसे ही खफा है मुझमे

अपनी नज़रों में ही क़द आज बढ़ा है अपना
जाने कैसा ये बदल आज हुआ है मुझमें

दुश्मनों में भी मेरा ज़िक्र ‘किरण’ है अक्सर
बात कोई तो ज़माने से जुदा है मुझमें 
 ********************************Kavita"kiran"