Wednesday, March 30, 2011

सूरत है ख़ूबसूरत अंदाज़ आशिकाना...


सूरत है ख़ूबसूरत अंदाज़ आशिकाना
मेरा
नाम शायरी है मुझे दाद देते जाना

कभी गीत बन गयी हूँ कभी बन गयी ग़ज़ल मैं
मुझे
गुनगुनाने वालों कहीं सुर भूल जाना

दिल है अजीब शायर बस 'दर्द' लिख रहा है
फुरसत
इसे कहाँ जो लिखे प्यार का तराना

तो गये हैं अपने नगमों को बेचने हम
यहाँ
कौन कद्रदां है मुश्किल है ढूंढ पाना

भटके कहाँ-कहाँ हम यूँ ही महफ़िलें सजाने
ना जाने किस शहर में कब तक है आबोदाना

ग़म बाँटने को अपना लिक्खी है कुछ क़िताबें
जिनको पढ़ेगा लेकिन मेरे बाद ये ज़माना

चाहत के कागजों पर जब से "किरण" लिखा है
गीतों में ढल गये दिन रातें है शायराना
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कविता'किरण' ('तुम्ही कुछ कहो ना!' में से)

Thursday, March 17, 2011

फागुन की शाम आई फागुन की शाम..(सभी मित्रों को होली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ इस बार एक गीत प्रस्तुत कर रही हूँ..)


(जयपुर में होली पर आयोजित महामूर्ख सम्मलेन में)

फागुन की शाम आई फागुन की शाम
मस्ती में डूबा है सारा ब्रज-धाम
फागुन की शाम आई फागुन की शाम
कण-कण में गूँज रहा कान्हा का नाम

डाली पे झूल रहे मीठे अंगूर हैं
पर बागबानों के हाथों से दूर है
कजरारे नैनों में मदिरा भरपूर है
लज्जा की लाली से मुखड़ा सिन्दूर है

रसवंती राधा है मादक हैं श्याम
फागुन की शाम आई फागुन की शाम


नैनों में नैनो से रस-रंग घोलें
मदमाते मौसम में तन-मन भिगो लें
रंगों से बात करें मुख से बोलें
होली में एक दूजे हो लें

हैं आम के आम गुठली के दाम
फागुन की शाम आई फागुन की शाम


जागी शिराओं में संवेदना है
विचलित है संयम विवश वर्जना है
तरुणाई पर हर मनोकामना है
हां का है दस्तूर ना-ना मना है

मनुहार में रूठने का क्या काम
फागुन की शाम आई फागुन की शाम

अनजानी आहट पे धडके जिया है
परदेस से लौट आया पिया है
कुछ द्वार ने देहरी से कहा है
संकोच ने फिर समर्पण किया है

पल-पल प्रणय हो लगे विराम
फागुन
की शाम आई फागुन की शाम


तन में तरंग, बजे मन में म्रदंग है
अम्बर के उर में भी जागी उमंग है
होली का अवसर है पावन प्रसंग है
और भावनाओं ने भी पी ली भंग है

कर कामनाओं की ढीली लगाम
फागुन की शाम आई फागुन की शाम
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(गीत संग्रह "ये तो केवल प्यार है" में से )
डॉ कविता'किरण'