है अब तो हर तरफ इक आग का आलम कहाँ जाएँ
बना है आदमी मानव से मानव बम कहाँ जाएँ
कहीं बारूद की बस्ती कहीं दहशत क़ि दुनिया है
'किरण' इंसानियत का घुट रहा है दम कहाँ जाएँ
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ज़हन में क्यों भरा बारूद क्यों हाथों में खंज़र हैं
यहाँ चारों तरफ क्योंकर बिछे लाशों के मंज़र हैं
क्यों मिटटी के लिए लड़ते हैं मिटटी से बने पुतले
क्यों नफरत की सुलगती तीलियाँ सीनों के अंदर हैं
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करें हर घर को फुलवारी हर इक कूचा चमन कर लें
बहारों से सजा गुलशन चलो अपना वतन कर लें
लहू देकर जिन्होंने अपना आज़ादी की कीमत दी
'किरण' हम आज उन सारे शहीदों को नमन कर लें
************डॉ कविता'किरण'
हमारा भी नमन है, उन शहीदों को। अच्छे मुक्तक, बधाई।
ReplyDeleteशहीदों को शत शत नमन्।
ReplyDeleteamar shido ko shat-shat naman...
ReplyDeletekunwar ji,
क्यूँ मिटटी के लिए लड़ते हैं मिटटी से बने पुतले
ReplyDeleteक्यूँ नफरत की सुलगती तीलियाँ सीनों के अन्दर हैं
वाह कविता जी वाह...बेहद कमाल की पंक्तियाँ और बहुत प्रेरक रचना...इस कमाल की रचना के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारे...
नीरज
शहीदों को शत शत नमन्।
ReplyDeletekavita ji hamare shahido ko jo aapne shradha suman samarpit kiye hei wo bahut khoob hei sach mei aaj ke iss dour mei yahi haalaat ho gaye aise mei aapki yeh kavita nischit hi samaj mei eik nai chetna laane ka kaam kar sakegi. Aap ko issake liye bahut bahut badhai and shubhkamnaye........... Aap aise hi likhte rahe ...........
ReplyDeleteshukriya shishirji.shukriya neeraj ji.aapke comments mujhe aur achha likhne ki prerna denge.
ReplyDeleteउत्कृष्ट ।
ReplyDeletevery nice poem .
ReplyDeleteneeraj ji,mridulaji aur aruneshji aap ka bahut bahut dhanywad.
ReplyDeleteशहीदो के प्रति बहुत अच्छे विचार और बढिया कविता. बधाई.
ReplyDeleteNice Kavita Ji....................
ReplyDeleteसुन्दर
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