छुपके सिरहाने में रोते हैं
लोग दीवाने क्यों होते हैं
हर गहरी साजिश के पीछे
दोस्त पुराने क्यों होते हैं
बन गये दिल पर बोझ जो ऐसे
साथ निभाने क्यों होते हैं
हर युग में दिल के शीशे को
पत्थर खाने क्यों होते हैं
जब भी वक़्त बुरा आता है
अश्क बहाने क्यों होते हैं
जो रंजो-गम नाप न पायें
वो पैमाने क्यों होते हैं
अश्कों से तर आँख हो फिर भी
लब मुस्काने क्यों होते हैं
'किरण' तेरी तिरछी नज़रों के
हम ही निशाने क्यों होते हैं
**************
डॉ कविता'किरण'
लोग दीवाने क्यों होते हैं
हर गहरी साजिश के पीछे
दोस्त पुराने क्यों होते हैं
बन गये दिल पर बोझ जो ऐसे
साथ निभाने क्यों होते हैं
हर युग में दिल के शीशे को
पत्थर खाने क्यों होते हैं
जब भी वक़्त बुरा आता है
अश्क बहाने क्यों होते हैं
जो रंजो-गम नाप न पायें
वो पैमाने क्यों होते हैं
अश्कों से तर आँख हो फिर भी
लब मुस्काने क्यों होते हैं
'किरण' तेरी तिरछी नज़रों के
हम ही निशाने क्यों होते हैं
**************
डॉ कविता'किरण'
छुपके सिरहाने में रोते हैं
ReplyDeleteलोग दीवाने क्यों होते हैं
............
बेहद भावुकता मे लिखा है आपने ......
सुंदर भाव ,अच्छी रचना ।
ReplyDeleteबन गये दिल पर बोझ जो ऐसे
ReplyDeleteसाथ निभाने क्यों होते हैं
हर युग में दिल के शीशे को
पत्थर खाने क्यों होते हैं
सच्ची शायरी !
बहुत बढ़िया!
सार्थक प्रस्तुति- साधुवाद!
ReplyDeleteसद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
सुन्दर रचना के साथ चित्र भी बहुत मेल खा रहा है!
ReplyDeleteहर गहरी साजिश के पीछे
ReplyDeleteदोस्त पुराने क्यों होते हैं
इसका उत्तर मिल जाए तो आदमी ठोकर ही न खाए कभी।
अच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।
ब्लॉग का टेम्प्लेट बहुत अच्छा है।
ReplyDeleteहर गहरी साजिश के पीछे
ReplyDeleteदोस्त पुराने क्यों होते हैं
................................
वाह...वाह...वाह
नायाब शेर....
अपना एक शेर याद आ रहा है...
ख़ज़र था किसके हाथ में ये तो पता नहीं,
हैं दोस्त की तरफ़ से मैं ग़ाफ़िल ज़रूर था.
.................................
हर युग में दिल के शीशे को
पत्थर खाने क्यों होते हैं.....
सवाल जितना आसान....
जवाब उतना ही मुश्किल...
शानदार ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद.
ReplyDeleteकिरण जी, बहुत प्यारा गीत है। बधाई स्वीकारें।
…………..
प्रेतों के बीच घिरी अकेली लड़की।
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
सीधी सरल भाषा में सीधी सरल बातें जो सीधी दिल में उतर गयी हैं...बहुत खूब...वाह ...
ReplyDeleteनीरज
सुन्दर और सटीक रचना
ReplyDeleteहर गहरी साजिश के पीछे
ReplyDeleteदोस्त पुराने क्यों होते हैं
बेहतरीन!!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteकविताजी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति है। इस ग़ज़ल में अंतर्निहित प्रश्नों के उत्तर देना आसान नहीं है। मानवीय भावनाओं, संवेगों और प्रवृत्तियों की उत्पत्ति के कारण ढूँढना बहुत ही जटिल कार्य है। ये तो आप जैसे विद्वद्जन ही ढूंढ सकते हैं।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteसच्ची शायरी
http://sometimesinmyheart.blogspot.com/
meri aazad rooh ko ab quide zism mat dena.badi mushkilo se kati he sazae zindagi maine
ReplyDeletevery nice creation.
ReplyDeletebahut bahut bahut bahut ... n 1000000000000 times bahut lagake bhi jo "bahut" kam pade utna sundar mam
ReplyDeleteउडन तश्तरी से पूर्णतया सहमत। बधाई स्वीकार करें।
ReplyDeleteअश्क तो अश्क है बहेगा जरूर
ReplyDeleteरोने से ही नहीं रुक जाए तो भी कहेगा जरूर
रोने से लकीर बनती है हंसने से मिट जाएगी
रोना जरूरी तो नहीं हँस के अश्क बहाए जा
ashok Manoram
kya baat hai.. Kavita ji.. :)
ReplyDeleteHar achhi sajish ke peeche dost purane kyun hote hain ? Kya khoob andaz hai aap ka har kisi ko chakkar me dalne ka .
ReplyDeleteThanks .
ashko se tar aankh ho phir bhi lab muskrane kyo hote hain..
ReplyDeleteek-ek line dil ko chhune wali hai kavita ji
Wahhh...
bahut khub likhti ho app
ReplyDeletewah wah kya baat hai apki kabita me
हर गहरी साजिश के पीछे
ReplyDeleteदोस्त पुराने क्यों होते हैं
kiraan jee ,
pranam !
vakai sunder rachna hai , oopar pesh ek sher aap ki nazar hai jo meri ppasand ka hai haalaki har sher damdaar hai ,
sadhuwad
saadar
आप सभी की टिप्पणियों का स्वागत सहित शुक्रिया.
ReplyDeleteek khoobsurat nazm ukeri hai bariki se ...gud one!
ReplyDeleteछुपके न जाने क्यों रोते हैं
ReplyDeleteलोग दीवाने क्यों होते हैं
गजल बहुत भाव पूर्ण है।
bahut sundar or manmohak kavita....
ReplyDeleteMeri Nai Kavita padne ke liye jaroor aaye..
aapke comments ke intzaar mein...
A Silent Silence : Khaamosh si ik Pyaas
दुखडा कासे कहूं सजनी
ReplyDelete"जो रंजो-ग़म नाप न पायें,वो पैमाने क्यूं होते हैं।"
ReplyDeleteबेहतरीन शे"र , सुन्दर गज़ल।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, उत्तम!
ReplyDeleteअच्छे शेर है। बधाई। आपकी किताब पढ्ने को कैसे मिल सकती है।
ReplyDeleteshabd kam hai tareef ko ...:D)
ReplyDeletebetreen najm
ReplyDeletemaja aa gaya/
hum bhi aapki tirchhi najar ke diwane ho gaye aaj se samjho to!
aapki Najm , Mashaallaha aap hi ki tarha khoobsurat ban padi he!
कुछ लम्हों के कुछ पलछिन में,
ReplyDeleteकुछ जश्न मनाने क्यों होते है..........
दिन रात सिसकती आहो में,
कुछ दर्द बेगाने क्यों होते है ..........
हर ख्वाब अधूरे है जिनके
वो लोग दीवाने क्यों होते है...........
कविता की किरणों से जग को
मशाल जलाने क्यों होते हैं............
hello didi ji aapki kavitayi mai daily padta hu or sunta hu....bahut accha lagta hai...apki kavitayi dil ko chu jane wali hai...
ReplyDeletekavita ji apki kavita ne man moh liya aapne purane dosto ki yaad dila di
ReplyDeletetoo good
ReplyDeleteBRILLIANT......
ReplyDeleteBHAVO KO SABDO KA BAHUT HI SAJEEV CHITRAN KIYA HAI MAM AAPNE .........BAHUT BAHUT BADHAI
Deleteग़ज़ल को ग़ज़ल कर दिया आपने
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