माया के परदे में क्या मन दिखता है
कहीं धूप में तारों का तन दिखता है
जब भी मन करता है जी भरकर बरसे
बरसातों को मेरा आँगन दिखता है
गये सैर को अपने अंतरमन की ओर
साँपों से लिपटा चन्दनवन दिखता है
अर्जुन को दिखती है बस चिड़िया की आँख
और प्यासे चातक को सावन दिखता है
किया सामना जब-जब भी आईने का
अन्जाना बेगाना दर्पण दिखता है
हाथ जुड़े मजदूरों के मज़बूरी में
पर दिखने को सबको वंदन दिखता है
****************
(तुम्ही कुछ कहो ना! में से.....)
डॉ कविता'किरण'
कहीं धूप में तारों का तन दिखता है
जब भी मन करता है जी भरकर बरसे
बरसातों को मेरा आँगन दिखता है
गये सैर को अपने अंतरमन की ओर
साँपों से लिपटा चन्दनवन दिखता है
अर्जुन को दिखती है बस चिड़िया की आँख
और प्यासे चातक को सावन दिखता है
किया सामना जब-जब भी आईने का
अन्जाना बेगाना दर्पण दिखता है
हाथ जुड़े मजदूरों के मज़बूरी में
पर दिखने को सबको वंदन दिखता है
****************
(तुम्ही कुछ कहो ना! में से.....)
डॉ कविता'किरण'
VERY NICE
ReplyDeleteग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।
ReplyDelete"हाथ जुड़े मजदूरों के मजबूरी में.."..कमाल का शेर कह दिया है आपने किरण जी वाह...बेहतरीन शेर और तल्ख़ सच्चाई...आपकी इस सोच को नमन...पूरी ग़ज़ल ही लाजवाब कही है आपने...दाद कबूल करें...
ReplyDeleteनीरज
हाथ जुड़े मज़दूरों के मजबूरी में
ReplyDeleteपर दिखने को सब को वंदन दिखता है
बहुत उम्दा !
मजबूरी की सच्चाई बयान कर दी आप ने
बहुत उम्दा!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब और बेमिसाल ..
ReplyDeletebahut hi pyara likha hai aapne...
ReplyDeleteMeri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
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मन भावन प्रस्तुति
ReplyDelete"हाथ जुड़े मजदूरों के मजबूरी में.."..
ReplyDeleteकमाल का शेर कह दिया है आपने किरण जी वाह...बेहतरीन शेर और तल्ख़ सच्चाई...आपकी इस सोच को नमन..
KIRANJI
ReplyDeleteNAMSKAR,
BAHUT HI ACCHA BLOG HAI, SABHI PRASTUTIYAN BEMISAAL HAI,
VINAY
माया के पर्दे में क्या मन.... यानि शुरुआत और अन्तिम पंक्तियां-
ReplyDeleteहाथ जुड़े मजदूरों के मजबूरी में..... बहुत सुन्दर.
bahut acchi kavita hai. ati sunder
ReplyDeleteaapki tarah aapki kavita ati sunder. aapki kavita me gahrai hai . pyasey ki pyaas hai , niraas ki aas hai . koi kuch bhi kahe per aapki kavita dil ke aas paas hai .
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