Wednesday, August 11, 2010

माया के परदे में क्या मन दिखता है कहीं धूप में तारों का तन दिखता है


माया के परदे में क्या मन दिखता है
कहीं धूप में तारों का तन दिखता है

जब भी मन करता है जी भरकर बरसे
बरसातों को मेरा आँगन दिखता है

गये सैर को अपने अंतरमन की ओर
साँपों से लिपटा चन्दनवन दिखता है

अर्जुन को दिखती है बस चिड़िया की आँख
और प्यासे चातक को सावन दिखता है

किया सामना जब-जब भी आईने का
अन्जाना बेगाना दर्पण दिखता है

हाथ जुड़े मजदूरों के मज़बूरी में
पर दिखने को सबको वंदन दिखता है
****************
(तुम्ही कुछ कहो ना! में से.....)
डॉ कविता'किरण'

14 comments:

  1. ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है।

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  2. "हाथ जुड़े मजदूरों के मजबूरी में.."..कमाल का शेर कह दिया है आपने किरण जी वाह...बेहतरीन शेर और तल्ख़ सच्चाई...आपकी इस सोच को नमन...पूरी ग़ज़ल ही लाजवाब कही है आपने...दाद कबूल करें...
    नीरज

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  3. हाथ जुड़े मज़दूरों के मजबूरी में
    पर दिखने को सब को वंदन दिखता है

    बहुत उम्दा !
    मजबूरी की सच्चाई बयान कर दी आप ने

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  4. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  5. हर शेर लाजवाब और बेमिसाल ..

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  6. bahut hi pyara likha hai aapne...

    Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....

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  7. मन भावन प्रस्तुति

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  8. "हाथ जुड़े मजदूरों के मजबूरी में.."..
    कमाल का शेर कह दिया है आपने किरण जी वाह...बेहतरीन शेर और तल्ख़ सच्चाई...आपकी इस सोच को नमन..

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  9. KIRANJI
    NAMSKAR,
    BAHUT HI ACCHA BLOG HAI, SABHI PRASTUTIYAN BEMISAAL HAI,
    VINAY

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  10. माया के पर्दे में क्या मन.... यानि शुरुआत और अन्तिम पंक्तियां-
    हाथ जुड़े मजदूरों के मजबूरी में..... बहुत सुन्दर.

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  11. bahut acchi kavita hai. ati sunder

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  12. aapki tarah aapki kavita ati sunder. aapki kavita me gahrai hai . pyasey ki pyaas hai , niraas ki aas hai . koi kuch bhi kahe per aapki kavita dil ke aas paas hai .

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