
अमृत पीकर भी है मानव मरा हुआ
बरसातों में ठूंठ कहीं है हरा हुआ
करके गंगा-स्नान धो लिए सारे पाप
सोच रहे फिर सौदा कितना खरा हुआ
सीमा से ज्यादा जब बढ़ जाती है प्यास
खाली हो जाता है सागर भरा हुआ
फूलों के तन से ज्यादा मन घायल है
पत्थर को अहसास नहीं ये ज़रा हुआ
भूत-प्रेत और देता दोष हवाओं को
अपने अंतर्मन से आदम डरा हुआ
जब ऊपरवाला अपनी पर आएगा
रह जायेगा खेल 'धरा' का धरा हुआ
*********
डॉ कविता'किरण'
बरसातों में ठूंठ कहीं है हरा हुआ
करके गंगा-स्नान धो लिए सारे पाप
सोच रहे फिर सौदा कितना खरा हुआ
सीमा से ज्यादा जब बढ़ जाती है प्यास
खाली हो जाता है सागर भरा हुआ
फूलों के तन से ज्यादा मन घायल है
पत्थर को अहसास नहीं ये ज़रा हुआ
भूत-प्रेत और देता दोष हवाओं को
अपने अंतर्मन से आदम डरा हुआ
जब ऊपरवाला अपनी पर आएगा
रह जायेगा खेल 'धरा' का धरा हुआ
*********
डॉ कविता'किरण'