अमृत पीकर भी है मानव मरा हुआ
बरसातों में ठूंठ कहीं है हरा हुआ
करके गंगा-स्नान धो लिए सारे पाप
सोच रहे फिर सौदा कितना खरा हुआ
सीमा से ज्यादा जब बढ़ जाती है प्यास
खाली हो जाता है सागर भरा हुआ
फूलों के तन से ज्यादा मन घायल है
पत्थर को अहसास नहीं ये ज़रा हुआ
भूत-प्रेत और देता दोष हवाओं को
अपने अंतर्मन से आदम डरा हुआ
जब ऊपरवाला अपनी पर आएगा
रह जायेगा खेल 'धरा' का धरा हुआ
*********
डॉ कविता'किरण'
बरसातों में ठूंठ कहीं है हरा हुआ
करके गंगा-स्नान धो लिए सारे पाप
सोच रहे फिर सौदा कितना खरा हुआ
सीमा से ज्यादा जब बढ़ जाती है प्यास
खाली हो जाता है सागर भरा हुआ
फूलों के तन से ज्यादा मन घायल है
पत्थर को अहसास नहीं ये ज़रा हुआ
भूत-प्रेत और देता दोष हवाओं को
अपने अंतर्मन से आदम डरा हुआ
जब ऊपरवाला अपनी पर आएगा
रह जायेगा खेल 'धरा' का धरा हुआ
*********
डॉ कविता'किरण'
जीवन के समग्र को समाए हुए एक सार्थक गजल।
ReplyDelete---------
गुडिया रानी हुई सयानी...
सीधे सच्चे लोग सदा दिल में उतर जाते हैं।
फूलों के तन से ज्यादा मन घायल है
ReplyDeleteपत्थर को अहसास नहीं ये ज़रा हुआ
बहुत सुन्दर गज़ल
भूत-प्रेत और देता दोष हवाओं को
ReplyDeleteअपने अंतर्मन से आदम डरा हुआ
kitni sachchai hai aapke inshabdon me !
bahut sateek bat kahi hai aapne Kavita ji .aabhar
अच्छी ग़ज़ल
ReplyDeleteनीरज
बहुत सुन्दर ग़ज़ल!
ReplyDeleteबिम्बों के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया है आपने!
सुन्दर बिम्बो के माध्यम से ज़िन्दगी की हकीकतें बयाँ कर दीं………उम्दा प्रस्तुति।
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 31 - 05 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच --- चर्चामंच
करके गंगा-स्नान धो लिए सारे पाप
ReplyDeleteसोच रहे फिर सौदा कितना खरा हुआ
वाह कविता जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है और ये शेर तो लाजवाब है !
ग़ज़ल में अब मज़ा है क्या ?
bhut sundar bhav aur khubsoorat rachna
ReplyDeletebahut badhiya ghazal..
ReplyDeleteaapka ek alag andaaz..badhai..
bahut achcha likhi hain.
ReplyDeletebahut khoobsurat rachana :)
ReplyDeleteकविता किरण जी!
ReplyDeleteआपकी शानदार रचना पढ़ कर सुखनुभूति हुई।
और एक मिसरा बन गया जो पेश है-
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सोचा था अपनी फसल खड़ी है गेहूँ की-
पर गेहूँ, गेहूँ रहा नहीं, बाजरा हुआ।
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सद्भावी- डा० डंडा लखनवी
करके गंगा-स्नान धो लिए सारे पाप
ReplyDeleteसोच रहे फिर सौदा कितना खरा हुआ
बहुत सुन्दर ग़ज़ल!
बिम्बों के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया है आपने!
गजल हो या गीत किरण जी के शब्दों जादू हैं .....।
ReplyDeleteसुश्री किरणजी , सप्रेम अभिवादन! अच्छे निबंध या कविता लेखन की खोज मे इधर उधर भटकता Blogmanch पर पहुंचा और उसके सहारे आपके ब्लॉग पर। बहुत से पेज देख चुका था और आपके पेज को सिर्फ़ सरसरी नज़र से देख कर निकल लेता कि थमक गया। पूरा का पूरा ही पढ़ गया। Position ये है कि YE DIL MAANGE MORE . इनको फ़िर फ़िर और फ़िर देखने आय चाहूंगा। इतने सुन्दर कृतित्व के लिये मेरी अन्तस की शुभ-कामनाएं स्वीकार कीजिये। आपके संकलन का कहीं प्रकाशन हुआ हो तो बराए मेहरबानी vijaykayalvijaykayal@gmail.com पर सूचना दें। आपकी रचनाएं अद्भुत , अनुपम और सर्वोत्कृष्ट हैं , इनको शेयर करने के लिये आपका साधुवाद !
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