Sunday, May 20, 2012

मिलता नहीं है कोई भी गमख्वार की तरह.....

मिलता नहीं है कोई भी गमख्वार की तरह
पेश आ रहे हैं यार भी अय्यार की तरह

मुजरिम तुम्ही नहीं हो फ़क़त जुर्म-ए-इश्क के
हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह

वादों का लेन-देन है, सौदा है, शर्त है
मिलता कहाँ है प्यार भी अब प्यार की तरह

ता-उम्र मुन्तज़िर ही रहे हम बहार के
इस बार भी न आई वो हर बार की तरह

अहले-जुनूं कहें के उन्हें संग-दिल कहें
मातम मना रहे हैं जो त्यौहार की तरह

यादों के रोज़गार से जब से मिली निजात
हर रोज़ हमको लगता है  इतवार की तरह

पैकर ग़ज़ल का अब तो 'किरण' हम को कर अता
बिखरे हैं तेरे जेहन में अश'आर की तरह
************************
-कविता'किरण'.


17 comments:

  1. khoob kahi kavita ji.......

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  2. अहले-जुनूं कहें के इन्हें संगदिल कहें
    मातम मना रही हॆं जो त्योहात की तराह
    एक एक शेअर बड़ा ख़ूबसूरत
    बड़ी सुन्दर ग़ज़ल

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  3. Yaadon ke rozgaar se...waah...behad khoobsurat misra hai aur poori ghazal bahut khoobsurat kahi hai aapne...daad kabool karen..

    neeraj

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    1. bahut bahut shukriya Neeraj ji..apki aamad huyi aur apko gazal pasand aayi..inayat bani rahe...:-)

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  4. आपकी इस उत्कृष्ठ प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार २२ /५/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी |

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  5. अच्छे अश’आर हैं कविता जी, बधाई स्वीकारें

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  6. बहुत खूब...
    सभी शे'र एक से बढ़कर एक!!!

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  7. वाह क्या बात है
    (अरुन = arunsblog.in)

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  8. ta umr muntazirhi rahe ham...............
    bahut khub very nice

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  9. कविता जी
    नमस्कार
    पहली मर्तबा आपके ब्लॉग पर आया हूँ , काफी अच्छा लगा !
    हरेक शेर लाजवाब हैं , बहुत खूब .....
    साभार !!

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  10. क्या बेहतरीन शेर कहे हैं आपने, बहुत उम्दा। ग़ज़ल के एक एक शेर से आपकी महारत झलकती है। लाजवाब।

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