Friday, September 28, 2012

मुक़द्दर से न अब शिकवा करेंगे........

मुक़द्दर से  न अब शिकवा  करेंगे
न छुप छुपके सनम  रोया करेंगे 


दयारे-यार में लेंगे पनाहें
दरे-मह्बूब पर सजदा करेंगे


हमीं ने ग़र शुरू की है कहानी
हमीं फिर ख़त्म ये किस्सा करेंगे 


जिसे ढूँढा ज़माने भर में हमने 
कहीं वो मिल गया तो क्या करेंगे  

कहा किसने ये तुमसे उम्र-भर हम
तुम्हारी याद में तडपा करेंगे

 
न होगा हमसे अब ज़िक्रे-मुहब्बत  
वफ़ा के नाम  से तौबा करेंगे

 खता हमसे हुयी आखिर ये कैसे 
अकेले बैठकर सोचा करेंगे

कि इस तर्के-तआलुक़ का सितमगर
किसी से भी नहीं चर्चा करेंगे

हयाते- राह में सोचा नहीं था
हमारे पाँव भी धोखा करेंगे

ज़माना दे'किरण'जिसकी मिसालें
क़लम में वो हुनर पैदा करेंगे

-कविता'किरण'

5 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (29-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  2. अटल विश्वास से भारी सुंदर शायरी ...अंतिम शेर बहुत पसंद आया ...
    शुभकामनायें ॥

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  3. बहुत सुन्दर गज़ल...
    सभी शेर लाजवाब...

    अनु

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  4. bohat khubsurat gajal hai.......,

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