Monday, January 11, 2010

'काव्य रत्न' सम्मान ग्रहण करते हुए कवियत्री डॉ कविता'किरण'


२५ दिसंबर ०९ को पानीपत में 'काव्य रत्न' सम्मान ग्रहण करते हुए कवियत्री डॉ कविता'किरण'

कलम अपनी,जुबां अपनी, कहन अपनी ही रखती हूँ,
अंधेरों से नहीं डरती 'किरण' हूँ खुद चमकती हूँ,
ज़माना कागजी फूलों पे अपनी जां छिड़कता है
मगर मैं हूँ की बस अपनी ही खुशबू से महकती हूँ
***डॉ.कविता'किरण

17 comments:

  1. कविता जी "काव्य रत्न" सम्मान प्राप्त करने पर बहुत बहुत बधाई...आपने अपने लिए जो पंक्तियाँ प्रस्तुत की हैं वो आपकी खुद्दारी को प्रदर्शित करती हैं...बहुत अच्छा लगा पढ़ कर.
    नीरज

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  2. हार्दिक बधाई.
    अपने बारे जो कहा
    कलम अपनी ........ से महकती हूँ.
    बेमिशाल.

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  3. कविता, बहुत बधाई। इसी प्रकार मंजिले पार करती रहो, शुभकामनाएं।

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  4. इस उपलब्धि के लिए बधाई व भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएं, आपके साहित्य सृजन की ख्याति यूं ही चहुं ओर विकसित होती रहे।

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  5. सम्मान के लिये बधाई और नये साल की शुभकामनाये

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  6. wah ...mahakti reho apni khsboo se etni mahko ki duniya jane ye kiran ki mahak hai ...wah ....acha hai ..

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  7. लोहिड़ी पर्व और मकर संक्रांति की
    हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  8. कविता जी
    "काव्य रत्न" सम्मान प्राप्त करने पर
    बहुत-बहुत बधाई

    मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!


    ★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
    'श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता'
    ★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
    क्रियेटिव मंच

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  9. कलम अपनी,जुबां अपनी, कहन अपनी ही रखती हूँ,
    अंधेरों से नहीं डरती 'किरण' हूँ खुद चमकती हूँ,
    ज़माना कागजी फूलों पे अपनी जां छिड़कता है
    मगर मैं हूँ की बस अपनी ही खुशबू से महकती हूँ


    ...................................
    क्या बात है आपका लेखन यक़ीनन इस पुरस्कार की हक़दार है बंधाई स्वीकारें

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