Tuesday, October 19, 2010

दिल से मिटती नहीं चुभन उसकी....


दिल से मिटती नहीं चुभन उसकी
रूह पर नक्श है छुअन उसकी

कभी मेले, कभी अकेले में
याद आती रही कहन उसकी

सर्द साँसों को मिल गयी राहत
आँच देती रही तपन उसकी

मैं मुकम्मल ग़ज़ल-सी हो जाऊं
शेर मेरे हों और कहन उसकी

जो भी जाये वहीँ का हो जाये
इतनी दिलकश है अंजुमन उसकी

किस क़दर खुश है मेरा दीवाना
हो गयी जैसे हो 'किरण' उसकी
***********
डॉ. कविता'किरण'




17 comments:

  1. ''सर्द साँसों को मिल गयी रहट
    आंच देती रही तपन उसकी ''
    इन पंक्तियों के साथ आप को प्रणाम !
    सुंदर ग़ज़ल है !
    मुबारक बाद !
    शुक्रिया !

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  2. वाह जी ………………क्या खूबसूरती से जज़्बातों को पिरोया है सीधे दिल मे उतर गये।

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  3. vaah...bahut sundar kavita/gajal...badhai.

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  4. कविता जी, बहुत सुंदर रचना है। बधाई स्वीकारें।

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  5. छोटी बहर कि इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दाद कबूल कीजिये...लिखती रहिये...आप बहुत अच्छा कहती हैं...

    नीरज

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  6. बहुत ही खूबसूरत अन्दाज में आपने मखमली गजल लिखी है!

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  7. खूबसूरत अंदाज़ है आपका! बढ़िया ग़ज़ल..

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  8. खूबसूरत ख्याल और अंदाज़ भी ..
    देखिये इस पोस्ट पर भी आपका ही जिक्र है ...
    http://shardaa.blogspot.com/2010/10/blog-post.html

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  9. चौथे शेर में 'मुकम्मल' शब्द ग़लत लिखा है .ठीक कर लीजिये.

    कुँवर कुसुमेश

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  10. मैं मुक्कमल गज़ल सी हो जाऊँ
    शेर मेरे होंेऔर कहन उसकी
    वाह क्या बढिया कहन है। बधाई ।

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  11. पढ़ कर आपको मज़ा-सा आया है ।
    मेरे ज़बां पर ये क्या-सा आया है ।

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  12. बहार यू चली की गज़ब की कर गयी खुदा महफूज़ रखे इल्ज़ा यार की
    आप ने क्या गज़ब का गज़ल लिखा है। कुछ याद आने लगा।

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  13. aap sabhi ke comments ke liye dil se shukriya.

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  14. आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
    मैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ

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  15. Superb...
    am proud of U.
    Narayan Jain

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  16. कविता जी ! आपकी एक और बेहतरीन ग़ज़ल देखने को मिली । मेरे हिसाब से आपकी इस ग़ज़ल की बहर ’फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ैलुन’ होनी चाहिए । बस एक मिसरे ’कभी मेले कभी अकेले में’ ये बहर मुझे ठीक बैठती नही लग रही है हो सकता है मैं गलत भी होऊं ।

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