दिल से मिटती नहीं चुभन उसकी
रूह पर नक्श है छुअन उसकी
कभी मेले, कभी अकेले में
याद आती रही कहन उसकी
सर्द साँसों को मिल गयी राहत
आँच देती रही तपन उसकी
मैं मुकम्मल ग़ज़ल-सी हो जाऊं
शेर मेरे हों और कहन उसकी
जो भी जाये वहीँ का हो जाये
इतनी दिलकश है अंजुमन उसकी
किस क़दर खुश है मेरा दीवाना
हो गयी जैसे हो 'किरण' उसकी
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डॉ. कविता'किरण'
''सर्द साँसों को मिल गयी रहट
ReplyDeleteआंच देती रही तपन उसकी ''
इन पंक्तियों के साथ आप को प्रणाम !
सुंदर ग़ज़ल है !
मुबारक बाद !
शुक्रिया !
वाह जी ………………क्या खूबसूरती से जज़्बातों को पिरोया है सीधे दिल मे उतर गये।
ReplyDeletevaah...bahut sundar kavita/gajal...badhai.
ReplyDeleteकविता जी, बहुत सुंदर रचना है। बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteछोटी बहर कि इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दाद कबूल कीजिये...लिखती रहिये...आप बहुत अच्छा कहती हैं...
ReplyDeleteनीरज
बहुत ही खूबसूरत अन्दाज में आपने मखमली गजल लिखी है!
ReplyDeleteखूबसूरत अंदाज़ है आपका! बढ़िया ग़ज़ल..
ReplyDeletewaah !
ReplyDeleteखूबसूरत ख्याल और अंदाज़ भी ..
ReplyDeleteदेखिये इस पोस्ट पर भी आपका ही जिक्र है ...
http://shardaa.blogspot.com/2010/10/blog-post.html
चौथे शेर में 'मुकम्मल' शब्द ग़लत लिखा है .ठीक कर लीजिये.
ReplyDeleteकुँवर कुसुमेश
मैं मुक्कमल गज़ल सी हो जाऊँ
ReplyDeleteशेर मेरे होंेऔर कहन उसकी
वाह क्या बढिया कहन है। बधाई ।
पढ़ कर आपको मज़ा-सा आया है ।
ReplyDeleteमेरे ज़बां पर ये क्या-सा आया है ।
बहार यू चली की गज़ब की कर गयी खुदा महफूज़ रखे इल्ज़ा यार की
ReplyDeleteआप ने क्या गज़ब का गज़ल लिखा है। कुछ याद आने लगा।
aap sabhi ke comments ke liye dil se shukriya.
ReplyDeleteआप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
ReplyDeleteमैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ
Superb...
ReplyDeleteam proud of U.
Narayan Jain
कविता जी ! आपकी एक और बेहतरीन ग़ज़ल देखने को मिली । मेरे हिसाब से आपकी इस ग़ज़ल की बहर ’फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ैलुन’ होनी चाहिए । बस एक मिसरे ’कभी मेले कभी अकेले में’ ये बहर मुझे ठीक बैठती नही लग रही है हो सकता है मैं गलत भी होऊं ।
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