Thursday, November 4, 2010

दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...


होली और दीवाली पर तो आते-जाते रहा करें
कम से कम त्योहारों पर हम इक दूजे से मिला करें

बारह महीनों में इक दिन आता है ये शुभ दिन हम आज
तन के, मन के, धन के सारे रिश्तों का हक अदा करें

दुःख तो जीवन का हिस्सा है दुःख का सोग मनाना क्या
मातम के मौसम को हम मन में आने से मना करें

काल-चक्र में कहीं खो गये कुछ अपने, कुछ अपनापन
दीपों कि जगमग में उन बिछड़े नातों का पता करें

जाने
कितने क़र्ज़ चढ़ाये और जताया कभी नहीं
हम जिसकी शाखें हैं उस बरगद को पानी दिया करें

क्या हो कभी-कभी जो दरिया जाये प्यासे के पास
बूंदे - सागर बैठ पुरानी यादें ताज़ा किया करें

चलो गिरा दें दीवारें अब अहंकार कि अंतस से
गैर भी अपने बन जायेंगे मन से 'मैं' को विदा करें

घोर तिमिर से लड़ते नन्हे दीपक से ये बोल 'किरण'
महलों से मोहलत लेकर झोपड़ियों में भी जला करें
*********

डॉ कविता'किरण'

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर संदेश देती सार्थक रचना।
    दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।

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  2. बहुत सुन्दर रचना है!
    --
    प्रेम से करना "गजानन-लक्ष्मी" आराधना।
    आज होनी चाहिए "माँ शारदे" की साधना।।

    अपने मन में इक दिया नन्हा जलाना ज्ञान का।
    उर से सारा तम हटाना, आज सब अज्ञान का।।

    आप खुशियों से धरा को जगमगाएँ!
    दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!

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  3. लाजवाब।

    चिरागों से चिरागों में रोशनी भर दो,
    हरेक के जीवन में हंसी-ख़ुशी भर दो।
    अबके दीवाली पर हो रौशन जहां सारा
    प्रेम-सद्भाव से सबकी ज़िन्दगी भर दो॥
    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
    सादर,
    मनोज कुमार

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  4. दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं .....

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  5. कविता जी,सच कहा आपने.आज-कल हम त्यॊहार कहां मनाते हॆ.मनाने की सि्र्फ ऒपचारिकता निभाते हॆं.

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  6. जी हाँ विनोदजी! काश कि इस तरह की रचनाएँ दिलों की दूरियों को कम कर पायें ......

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