
पहुंचेगा मंजिल तक जैसे
दिल जलता है दीपक जैसे
मुड-मुड कर वो देख रहा है
उसको मुझ पर हो शक जैसे
खनक उठे दिल के दरवाज़े
उसने दी हो दस्तक जैसे
सीने में इक ख़ामोशी है
सहम गयी हो धक्-धक् जैसे
आज जिया है वो जी-भरकर
मौत टली हो कल तक जैसे
हर मंजिल पर वो ही वो है
हर रस्ता है उस तक जैसे
'किरण' सताए वो कुछ ऐसे
मुझ पर हो उसका हक जैसे
********
डॉ कविता'किरण'
दिल जलता है दीपक जैसे
मुड-मुड कर वो देख रहा है
उसको मुझ पर हो शक जैसे
खनक उठे दिल के दरवाज़े
उसने दी हो दस्तक जैसे
सीने में इक ख़ामोशी है
सहम गयी हो धक्-धक् जैसे
आज जिया है वो जी-भरकर
मौत टली हो कल तक जैसे
हर मंजिल पर वो ही वो है
हर रस्ता है उस तक जैसे
'किरण' सताए वो कुछ ऐसे
मुझ पर हो उसका हक जैसे
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डॉ कविता'किरण'