ऋतुओं की रानी हूँ मै शरद सुहानी हूँ
फागुन में होली रस-रंग की बहार हूँ!
चमकूँ बिजुरिया-सी बरसूँ बदरिया-सी
सावन में रिमझिम बरखा-बहार हूँ!
जेठ की दुपहरी हूँ चांदनी रुपहरी हूँ
वासंती हवा हूँ मंद-मंद मै बयार हूँ!
प्यार-मनुहार हूँ अंगार हूँ श्रंगार हूँ
चढ़के न उतरे वो प्रीत का खुमार हूँ!
**********
कविता'किरण'
फागुन में होली रस-रंग की बहार हूँ!
चमकूँ बिजुरिया-सी बरसूँ बदरिया-सी
सावन में रिमझिम बरखा-बहार हूँ!
जेठ की दुपहरी हूँ चांदनी रुपहरी हूँ
वासंती हवा हूँ मंद-मंद मै बयार हूँ!
प्यार-मनुहार हूँ अंगार हूँ श्रंगार हूँ
चढ़के न उतरे वो प्रीत का खुमार हूँ!
**********
कविता'किरण'
• सृष्टि को एक नई प्रविधि से देखने की तरक़ीब!
ReplyDeleteप्यार-मनुहार हूँ अंगार हूँ श्रंगार हूँ
ReplyDeleteचढ़के न उतरे वो प्रीत का खुमार हूँ!
सादर प्रणाम !
प्रकर्ति को नए शब्दों में ढाला है , जाकब कि यहाँ तो अभी बीकानेर में '' धुवे में लिपटा मेरा शहर , सूरज रजाई ओढ़े बैठा है बादलो में '' ऐसा लग रहा . है , बधाई ,
सादर
समर्पण के साथ लिखी सुन्दर गजल के लिए बधाई!
ReplyDeleteनये साल की मुबारकवाद कुबूल करें!
waah kya baat hai kavita ji...
ReplyDeletehindi ke shabdon ka kya manmohak upyog kiya hai aapne...
dil khush ho gaya!!
Kavita sundar hai suron me piroyen to some pe suhaga hogi dil Ki baat to kah di gar Kisi dil tak pahunche to kya baat hogi.
ReplyDelete