उनसे आँखों ही में होती है लड़ाई मेरी
थाम लेते हैं सनम जब भी कलाई मेरी
आईनों!शोख मिजाजी में हया के तेवर
मुझको तस्वीर नई तुमने दिखाई मेरी
इन्तेहाँ देखो शरारत की भरी महफ़िल में
उसने गा-गाके ग़ज़ल मुझको सुनाई मेरी
मैंने रो-रोके जुदाई में यहाँ जाँ दे दी
बेवफा याद भी तुझको नहीं आई मेरी
भरी बरसात में यूँ छोडके जानेवाले
तुझको भी खूब सताएगी जुदाई मेरी
मुझको सूरज ने उतारा है उजाले देकर
ऐ "किरण"आज ज़मीं पर हो बधाई मेरी
*****कविता 'किरण'******
bahut sunder.
ReplyDeleteवाह ! इतनी ख़ूबसूरत ग़ज़ल का एक-एक शेर कमाल का लगा. आभार सम्मानिया कविता जी !
ReplyDeleteBeautiful!
ReplyDeleteसुन्दर गजल!
ReplyDeleteप्रेम दिवस की शुभकामनाएँ!
बहुत ही खूबसूरत नज़्म लिखी है…………प्रेम दिवस की शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteअतीव सुंदर ग़ज़ल..
ReplyDeleteबधाई.
अच्छी ग़ज़ल...
ReplyDeleteनीरज
मेम !
ReplyDeleteप्रणाम !
एक अलग मूड कि सुंदर ग़ज़ल है .
साधुवाद !
सादर !
aapki tareef me kya kahun ! bahut shandar gazal .
ReplyDeleteअती सुंदर ग़ज़ल|धन्यवाद|
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल है कविता जी ...
ReplyDeleteआपको दुबई मुशायरे में सुना बहुत अच्छा लगा ...
मुझको सूरज ने उतारा है उजाले देकर ...
ReplyDeleteबहुत सीधी और अच्छी गजल ! शुभकामनाएँ !
कविता जी फागुनी रंग में सराबोर इस ग़ज़ल के लिए तहे दिल से दाद कबूल करें...
ReplyDeleteनीरज