जिसकी आँखों में सिर्फ पानी है
वो ग़ज़ल आपको सुनानी है
अश्क कैसे गिरा दूँ पलकों से
मेरे महबूब की निशानी है
लब पे वो बात ला नहीं पाए
जो कि हर हाल में बतानी है
कहीं आंसू कहीं तबस्सुम है
कुछ हकीकत है कुछ कहानी है
हमने लिखा नहीं किताबों में
अपना जो भी है मुंह ज़बानी है
कर दी आसान मुश्किलें सारी
मौत भी किस क़दर सुहानी है
कर दी आसान मुश्किलें सारी
मौत भी किस क़दर सुहानी है
आज तो बोल दे 'किरण' सब कुछ
ख़त्म पर फिर तो जिंदगानी है
**************
( 'दर्द का सफ़र' में से )
( 'दर्द का सफ़र' में से )
डॉ कविता'किरण'
bahut acchi rachna hai .
ReplyDeleteहिन्दीकुंज
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteaansu kaise gira dun ,mere mehboob ki nishani hai.
ReplyDeletebahut khoob-bahut hi khoob-bahoot bahut hi khoob!
badhai ho!
kavita ji kabhi kabhi to aap kamal hi kar deti han.ek bar fir badhai!
behtreen gazal..........shandar sher.
ReplyDeleteलाजवाब ग़ज़ल ... हर शेर क़ाबिले तारीफ़ .. सुभान अल्ला ही निकलता है
ReplyDeletehey Kavita...
ReplyDeleteReally nice work there. You have a way with words, which say a lot even when not much is said. We appreciate your talent and would like you on-board with us at http://www.tumbhi.com It's a platform for artists and art lovers to come together. Hope to see you on-board.
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हमने लिखा नहीं किताबों में
ReplyDeleteअपना जो भी है मुंह ज़बानी है
एक और लाजवाब शे’र!
अश्क कैसे गिरा दूँ पलकों से
ReplyDeleteमेरे महबूब की निशानी है
ओह! नो! अद्भुत! उत्तम अभिव्यक्ति!!!
bahut khoobsurat Matla kaha hai aapne Kavita ji
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन गजल!
ReplyDeleteकल के चर्चा मंच में इसे चुरा लिया है!
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल...जज़्बात अल्फाजों में ढाल दिए हैं....बहुत खूब
ReplyDeleteVERY NICE.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी की गई है-
http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_6838.html
चर्चा मंच से आपके ब्लॉग पर आया । आपकी यह ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी । बधाई ! हर एक शेर उम्दा है !
ReplyDeleteहर शे'र सुन्दर आकर्षक है...
ReplyDelete"हमने लिखा नहीं किताबों में.... "
बहुत खूब.
hmmm.....achhi ghazal....chhoti behar me kafi kuch kehne ki koshish hai ...
ReplyDeleteअश्क कैसे गिरा दूँ पलकों से
ReplyDeleteमेरे महबूब की निशानी है
वाह वाह कविता जी वाह...बेहद खूबसूरत अशआरों से सजी आपकी ये ग़ज़ल लाजवाब है...दाद कबूल करें...
नीरज
Wah kya baat hein ........
ReplyDeletehumne likha nahi kitabon mein !
apna jo bhi hein muh-jubani hein !!
kya baat hein... bahut hi badiya .
अश्क कैसे गिरा दूँ पलकों से
ReplyDeleteमेरे महबूब की निशानी है
बहुत खूब. बहत ही खूब . क्या ज़ज्बा है मौहब्बत का. महबूब की निशानी . बधाई इस ग़ज़ल के लिए.
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteइसे 17.04.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
Bahut hee umda gajal---har sher ek se badh kar ek bhavon ke sath.
ReplyDeletePoonam
अश्क कैसे गिरा दूं पलकों से...
ReplyDeleteमेरे महबूब की निशानी है...
कविता जी, वाक़ई शेर हुआ है
कहीं आंसू कहीं तबस्सुम हैं...
कुछ हकीकत है कुछ कहानी है.
लाजवाब शायरी.....दिल को छूने वाली
अश्क कैसे गिरा दूँ पलकों से
ReplyDeleteमेरे महबूब की निशानी है..यह बहुत पसंद आया..बेहतरीन ब्लॉग..
jisaki aankho mei sirf paani hei ..... ne dil ko chu liya kavitaji aap ne bahut hi achche dhang se eik dil ki bejubani ko sabdo ke maadhyam se baya kiya hei aapki inn lines nei dil ko choo liya kash mei aapki yeh puri kavita padh sakta muzhako lagta hei aap jo likhte hei wo sirf likhna hi nahi kahi na kahi kisi ke dil ki aawaaz si lagti hei lagta hei kisi ke dil ki hei jo aapne apane shabdo ke madhyam se bakhubi eik mala bana kar piroye hei jo dil ke taro ko zhakjhor kar dil mei eik alag sa kampan sa kar diya karta hei aapki lines ko padh kar hum to aapke diwane ho gaye ..............hamare dil ke liye aap bhi kuch kahe to achcha lagega kavita.................
ReplyDeleteकविता जी . आपकी गजल सजल करने को पर्याप्त है । जो अश्क आया उसे गिराया नही , लिख दिया ।
ReplyDeleteshukriya aruneshji aapne sahi farmaya.
ReplyDeleteAur shishirji aap jaroor meri kavitaon ke kayal honge lekin main to aapke comments ki kayal hun.aapki vistrat vyakhya mujhe housla aur utsah deti.aage bhi aap mere blog per aate tahenge ye umeed karti hun.
उम्दा गजल...वाकई...बधाई
ReplyDeletekavita mam bahut hi marmik ahsas diya hai aapne........
ReplyDeletewo to pani ke katre hote hain jo bah jate hain.
aansu to dard ban kar palko par rah jate hain...
kavita ji aapki is pankti ka dil kaya ho gaya "ask kaise gira doon palakon se , mere mehbub ki nishani hain" iswar aapki is khoobsurti aur shabdon ki jadugari ko banaye rakhe...
ReplyDeletekavita ji aapki is pankti ka dil kaya ho gaya "ask kaise gira doon palakon se , mere mehbub ki nishani hain" iswar aapki is khoobsurti aur shabdon ki jadugari ko banaye rakhe...
ReplyDeleteकविता जी,
ReplyDeleteमाफ़ कीजियेगा, आपकी ग़ज़ल पढ़ी तो उसी बहर के "दो मिसरे" यकायक ज़ेहन में पैदा हो गए, सोंचा आपसे बाँट लूँ. लिहाज़ा आपकी नज़्र है :
मेरी आँखों में जो अश्क हैं,
उसके ग़मों की तर्जुमानी हैं.
- दिनेश "दर्द", उज्जैन.
अश्क कैसे गिरा दूं पलकों से
ReplyDeleteमेरे महबूब की निशानी है
वाह! क्या कहने !