एक काम वाली बाई..जिसके बिना गृहिणियों की गृहस्थी अधूरी होती है.. उसकी अपनी भी कोई पीड़ा हो सकती है....एक अछूते विषय पर कुछ कहने की...उसकी संवेदना को व्यक्त करने की कोशिश करती हुई एक रचना प्रस्तुत है...
स्वेद नहीं आंसू से तर हूँ मेमसाब
घर के होते भी बेघर हूँ मेमसाब
मैं बाबुल के सर से उतरा बोझ हूँ
साजन के घर का खच्चर हूँ मेमसाब
घरवाले ने कब मुझको मानुस जाना
उसकी खातिर बस बिस्तर हूँ मेमसाब
आज पढ़ा कल फेंका कूड़ेदान में
फटा हुआ बासी पेपर हूँ मेमसाब
कभी कमाकर लाता न फूटी कौड़ी
कहता है धरती बंजर हूँ मेमसाब
उसकी दारु और दवा अपनी करते
बिक जाती चौराहे पर हूँ मेमसाब
आती -जाती खाती तानों के पत्थर
डरा हुआ शीशे का घर हूँ मेमसाब
अपनी और अपनों की भूख मिटाने को
खाती दर-दर की ठोकर हूँ मेमसाब
घर-घर झाड़ू-पोंछा-बर्तन करके भी
रह जाती भूखी अक्सर हूँ मेमसाब
कोई कहता धधे वाली औरत है
पी जाती खारे सागर हूँ मेमसाब
ऐसी- वैसी हूँ चाहे जैसी भी हूँ
नाकारा नर से बेहतर हूँ मेमसाब
************************
कविता'किरण'
स्वेद नहीं आंसू से तर हूँ मेमसाब
घर के होते भी बेघर हूँ मेमसाब
मैं बाबुल के सर से उतरा बोझ हूँ
साजन के घर का खच्चर हूँ मेमसाब
घरवाले ने कब मुझको मानुस जाना
उसकी खातिर बस बिस्तर हूँ मेमसाब
आज पढ़ा कल फेंका कूड़ेदान में
फटा हुआ बासी पेपर हूँ मेमसाब
कभी कमाकर लाता न फूटी कौड़ी
कहता है धरती बंजर हूँ मेमसाब
उसकी दारु और दवा अपनी करते
बिक जाती चौराहे पर हूँ मेमसाब
आती -जाती खाती तानों के पत्थर
डरा हुआ शीशे का घर हूँ मेमसाब
अपनी और अपनों की भूख मिटाने को
खाती दर-दर की ठोकर हूँ मेमसाब
घर-घर झाड़ू-पोंछा-बर्तन करके भी
रह जाती भूखी अक्सर हूँ मेमसाब
कोई कहता धधे वाली औरत है
पी जाती खारे सागर हूँ मेमसाब
ऐसी- वैसी हूँ चाहे जैसी भी हूँ
नाकारा नर से बेहतर हूँ मेमसाब
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कविता'किरण'
behtareen
ReplyDelete:hats off: u m'am :)
काम वाली बाई की व्यथा का बखूबी चित्रण , सुन्दर तारतम्य , बधाई
ReplyDeleteकविता जी हार्दिक बधाई।
ReplyDelete------
बेहतर लेखन की ‘अनवरत’ प्रस्तुति।
वैचारिक बहस: क्या अंधविश्वास गरीबी का रोग है?
very touching
ReplyDeletechehre per ubharte bhawon ko aapne shabd diye hain ...
ReplyDeleteयथार्थ को बयान करती अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतर है नुमाइश तेरी, बेहतर है तेरा यूँ कहना |
ReplyDeleteकिसी की मजबूरी को, लफ़्ज़ों में यूँ तेरा पिरोना |
वेदना और मुश्किलों के बोझ से पिघलती मानवता
ReplyDeleteका ह्रदय द्रावक चित्र आपने अपनी कविता के माध्यम
से प्रस्तुत किया है. प्रशंसनीय अभिव्यति.
साधुवाद.
आनन्द विश्वास
मार्मिक और सच्ची भावना से भरी हुई रचना .
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 13 अगस्त2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह..
ReplyDeleteएक कटु सत्य
काफी ताकत लगाकर लिखी रचना