वही रात-रात का जागना
वही ख़ुद को ख़ुद में तलाशना
वही बेख़ुदी, वही बेबसी
वही अपने आप से भागना!
वही जिंदगी, वही रंज़ो-ग़म
वही बेकली, वही आँख नम
वही रोज़ ही, इक दर्द से
करना पड़े हमें सामना !
वही रोना इक-इक बात पर
तकिये से मुंह को ढांपकर
सर रख के अपने हाथ पर
खाली हवाओं को ताकना !
वही आंसुओं का है सिलसिला
वही ज़ीस्त से शिकवा-गिला
वही इश्क़ सांवली रात से
वही जुगनुओं को निहारना!
कभी रो के काटी ये ज़िंदगी
कभी पा गये थोड़ी खुशी
कभी आफताब का नूर था
कभी छा गया कोहरा घना !
*******************
डॉ.कविता 'किरण'
वही ख़ुद को ख़ुद में तलाशना
वही बेख़ुदी, वही बेबसी
वही अपने आप से भागना!
वही जिंदगी, वही रंज़ो-ग़म
वही बेकली, वही आँख नम
वही रोज़ ही, इक दर्द से
करना पड़े हमें सामना !
वही रोना इक-इक बात पर
तकिये से मुंह को ढांपकर
सर रख के अपने हाथ पर
खाली हवाओं को ताकना !
वही आंसुओं का है सिलसिला
वही ज़ीस्त से शिकवा-गिला
वही इश्क़ सांवली रात से
वही जुगनुओं को निहारना!
कभी रो के काटी ये ज़िंदगी
कभी पा गये थोड़ी खुशी
कभी आफताब का नूर था
कभी छा गया कोहरा घना !
*******************
डॉ.कविता 'किरण'
बहुत ख़ूबसूरत नज़्म
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर नज़्म दिल को छू गयी।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना ..
ReplyDeleteप्रणाम !
ReplyDeleteआशा निराशा के बीच एक आस लिए स्वयं को कही ढूदना .!
सुंदर , स्वयं को हर शै के साथ जोड़ अपने ज़ज्बात ढालना ,.
साधुवाद
सादर !
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 05 - 07 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच-- 53 ..चर्चा मंच 566
आपका वही अंदाज...
ReplyDeleteऐसे ही बिताती जाती है ज़िन्दगी....
ReplyDeleteसुंदर नज़्म...
kya baat hai......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...बधाई
ReplyDeleteवही आंसुओं का है सिलसिला
ReplyDeleteवही ज़ीस्त से शिकवा-गिला
वही इश्क़ सांवली रात से
वही जुगनुओं को निहारना!
वाकई बहुत सुंदर रचना
dil ko chhu lenewali nazm
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत नज़्म है, कविता जी...
ReplyDeleteसादर
वाह!! बेहतरीन रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..
ReplyDeleteaap sabhi mitron ka mere blog per tashreef lane aur meri nazm ki sarahne ke liye tahe-dil se shukriya....:)
ReplyDeletebahut sunder bhaav-pravan rachna jo dil ke haal bayaan kar gayi.
ReplyDeleteमन से निकले भाव
ReplyDeleteशब्दों में उतर गये... आभार..
जीवन के श्रृंग और गर्त से बखूबी परिचय कराती एक अत्यंत संवेदनशील भावनामयी रचना जो मन की गहराई में उतार कर सोचने को विवश करती है. पहली बार आपके ब्लॉग पर आया और मुरीद बन गया आपकी लेखनी का. सदस्यता भी लेली है. आभार संवेदनाओं का.
ReplyDeleteकभी रो के काटी ये ज़िंदगी
ReplyDeleteकभी पा गये थोड़ी खुशी
कभी आफताब का नूर था
कभी छा गया कोहरा घना !
nice lines kavita zi :)
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किसी और की हो नहीं पाएगी वो ||
Jab bhav charam pr mukhrit hota hai to rachana vehad khubsurat ban jaati hai.shubhkamna.
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत नज्म दाद को मुहताज नहीं फिर भी दिल ने कहा वाह वाह ...
ReplyDeleteआपकी किसी पोस्ट की चर्चा होगी कल शनिवार (१६ -०७-११)को नयी-पुराणी हलचल पर |कृपया आयें और अपने सुझाव दें....!!
ReplyDeletedil ko chhu gayee gajal...
ReplyDeleteKhoobsurat prastuti ke liye aabhar!
क्यूँ इस तरह, जिन्दगी को, रोया तुमने |
ReplyDeleteअभी तो बहुत, बाकी है, क्या खोया तुमने |