Friday, September 2, 2011

बेवज़ह बस वबाल करते हो.......


बेवज़ह बस वबाल करते हो

जिंदगी को मुहाल करते हो


कब किसी का ख़याल करते हो

जान ! कितने सवाल करते हो


जी दुखाते हो पहले जी-भरकर

बाद इसके मलाल करते हो


खुद ही बर्खास्त करते हो दिल से

खुद ही वापिस बहाल करते हो


अश्क देते हो पहले आँखों में

बाद हाज़िर रूमाल करते हो


अपनी तीखी नज़र से पढ़-पढ़कर

मेरा चेहरा गुलाल करते हो


जब नज़र को नज़र समझती है

लफ्ज़ क्यों इस्तेमाल करते हो


पल में शोला हो पल में हो शबनम

तुम भी क्या-क्या कमाल करते हो

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कविता" किरण "

9 comments:

  1. वाह कविता जी बहुत सुन्दर भाव संजोये हैं।

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  2. आप भी बस क्या धमाल करते हो ...खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  3. खुद ही बर्खास्त करते हो दिल से
    खुद ही वापिस बहाल करते हो

    खूबसूरत गज़ल.

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  4. जी दुखाते........
    बर्खास्त - बहाल ...........
    और,
    चेहरा गुलाल करते हो..

    बहुत खूब, मज़ा आया पढ़ कर| ऐसे ही पढ़वाते रहिएगा|

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  5. पढ़कर एक सुखद अनुभूति हुई , प्रारंभ किया तो बहता ही चला गया. आप भी सचमुच कमाल कर देती हैं.

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  6. वाह, बहुत खूब....आनन्द आ गया....

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  7. Bahut khubsurat kaha hai aapne............

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  8. bahut hi umda Ghazal hai Kavita ji......

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  9. KYA BAAT HAI KAVITA JI. AAP BHI KYA KAMAL HO!BAHUT DINO KE BAAD MAINE AAPKAYEH 'GOOGLE READ' DEKHA HAI.BAHUT HEE SUNDER...........RRRRRRRR !

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