Sunday, November 13, 2011

मोमिन औ' दाग़ औ'ग़ालिब की ग़ज़ल-सी लड़की....

मोमिन औ' दाग़ औ'ग़ालिब की ग़ज़ल-सी लड़की
चांदनी रात में इक ताजमहल-सी लड़की

जिंदा रहने को ज़माने से लड़ेगी कब तक
झील के पानी में शफ्फाफ़  कँवल-सी लड़की

कोख़ को कब्र बना डाला जब इक औरत ने
कट गयी पकने से पहले ही फसल-सी लड़की

बेटी होना है  ज़माने में गुन्हा क्या  कोई
घिर गयी सख्त सवालों में सरल-सी लड़की

नर्म हाथों पे नसीहत के धरे अंगारे
चाँद छूने को गयी जब भी मचल-सी, लड़की

अपनी सांसों का सफ़रनामा शुरू से पहले
अपने अंजाम से जाती है दहल-सी, लड़की

बेटियां खूब दुआओं से मिला करती हैं
कौन कहता है ख़ुशी में है खलल-सी, लड़की

इतना कहना  है "किरण" आज के माँ-बापों से
बोझ समझो न है अल्लाह के फज़ल-सी, लड़की
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कविता'किरण'

10 comments:

  1. बहुत अच्छी रचना ...कौन कहता है खुशी में खलल-सी है लड़की , बोझ समझो न है अल्लाह के फज़ल-सी लड़की । शुभकामनाएं ...

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  2. बहुत सुन्दर संदेश देती रचना।

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  3. बहुत प्रेरक... बहुत सुन्दर गज़ल...
    सादर बधाई...

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  4. नर्म हाथों पे नसीहत के धरे अंगारे.....वाह...क्या मिसरा है...कविता जी आपकी बेहतरीन ग़ज़लों में इस ग़ज़ल को शुमार करूँगा...मेरी दिली दाद कबूल करें

    नीरज

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  5. bahut bada shayar to nahin hun par aapki is rachna main
    "maa saraswati aur laxmi ka roop hai,ye adad si ladki"
    ubharta kavi,
    Dr.(Prof.)Rajesh Kumar Mangla(09813021266
    kabhi kisi kavi sammelan main mauka den! (ek prarthna)

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  6. बहुत अच्छी रचना.
    हम अनुवंशिक दोष रूपी नशे में स्त्रियों के बलिदान को करते है तिरष्कृत और समझते है बेचारी ताड़न की अधिकारी.

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  7. lo mukammal hui gazal akhir
    wah ji wah Kiran Bandhai ho ..


    yakinan kabil-e-daad
    marmik abhivyakti par bandhai swikaren

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