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गैर को ही पर सुनाये तो सही
शेर मेरे गुनगुनाये तो सही
जी नहीं हमसे रकीबों से सही
आपने रिश्ते निभाए तो सही
है मिली किस बात की हमको सज़ा
ये कोई हमको बताये तो सही
आँख बेशक हो गई नम फ़िर भी हम
जख्म खाकर मुस्कुराये तो सही
याद आए हर घड़ी अल्लाह हमें
इस कदर कोई सताए तो सही
इन अंधेरों में फ़ना होकर "किरण"
हम किसीके काम आए तो सही
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डॉ कविता"किरण"
शेर मेरे गुनगुनाये तो सही
जी नहीं हमसे रकीबों से सही
आपने रिश्ते निभाए तो सही
है मिली किस बात की हमको सज़ा
ये कोई हमको बताये तो सही
आँख बेशक हो गई नम फ़िर भी हम
जख्म खाकर मुस्कुराये तो सही
याद आए हर घड़ी अल्लाह हमें
इस कदर कोई सताए तो सही
इन अंधेरों में फ़ना होकर "किरण"
हम किसीके काम आए तो सही
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डॉ कविता"किरण"