बात छोटी है मगर सादा नहीं
प्यार में हो कोई समझौता नहींतुम पे हक हो या फलक पे चाँद होचाहिए पूरा मुझे आधा नहींदिल के बदले दांव पर दिल ही लगे
इससे कुछ भी कम नहीं ज्यादा नहींमर मिटे हैं जो मेरी मुस्कान पर
उनको मेरे ग़म का अंदाज़ा नहीं इक न इक दिन टूट जाना है 'किरण'
इसलिए करना कोई वादा नहीं
**********************डॉ कविता'किरण'
प्यार में हो कोई समझौता नहींतुम पे हक हो या फलक पे चाँद होचाहिए पूरा मुझे आधा नहींदिल के बदले दांव पर दिल ही लगे
इससे कुछ भी कम नहीं ज्यादा नहींमर मिटे हैं जो मेरी मुस्कान पर
उनको मेरे ग़म का अंदाज़ा नहीं इक न इक दिन टूट जाना है 'किरण'
इसलिए करना कोई वादा नहीं
**********************डॉ कविता'किरण'
bahut hi badhiya likha hain aapne
ReplyDeleteकविता इस बेहद खूबसूरत ग़ज़ल के दिली दाद कबूल करें. सारे के सारे शेर असरदार हैं इसलिए एक आध को कोट नहीं कर रहा.
ReplyDeleteमतले में काफिया "ज़ा" और रदीफ़ "नहीं" आ रहा है...ये काफिया बाद में नहीं निभाया गया...हिंदी ग़ज़ल में शायद ये ठीक हो लेकिन फिर भी उस्तादों से एक बार पूछ लेना चाहिए.
नीरज
आपको एक सदी जितनी उम्र नसीब हों कि कई सौ सदियों तक ये शब्द जादू जागते रहें.
ReplyDeleteहर शेर एक कहानी है, एक मुकम्मल कहानी. बधाई.
उत्कृष्ट रचना!
ReplyDeleteक्या बोलूं? नि:शब्द हूँ
ReplyDeleteबहुत ही ग़ज़ब से शेर हैं .,.......... तुम पे हक हो ..... या फिर मर मिटे जो ...... बहुत शोखी है शेरों में ..........
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत ग़ज़ल...वाह, लाजबाब!
ReplyDelete'पांडव लगा दें दांव पर वो द्रोपदी नहीं है दिल
ReplyDeleteतोड़ दें हम दिल किसी का ये हमें मंज़ूर नहीं;
उनने तो सिर्फ आपकी मुस्कान ही तो देखी थी
दिल आ गया किसी पे ये आँख का कुसूर नहीं.
माननीय----- खोलकर खिड़की रखो या बंद दरवाजे रखो
आजकल ताजी हवाएं ख्वाब बन कर रह गई हैं
बेहतरीन ग़ज़ल बेहतरीन अंदाज काबिले तारीफ
बहुत बहुत बधाई
ग़ज़ल दिल को छू गई।
ReplyDeleteबेहद पसंद आई।
टूटना यदि विख़रना है, तो न करो वादा यही सही।
ReplyDeleteविख़र कर भी महक सकना,मुस्कान का अन्दाजा नही॥
Behad sundar rachana hai!
ReplyDeleteहमेशा की तरह वेहतरीन गज़ल
ReplyDeleteमर मिटे वो जो मेरी मुस्कान पर हैं मेरे ग़म का अंदाजा नहीं...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ ....!!
उनको मेरे गम का अंदाजा नहीं है... बहुत खूब.
ReplyDeleteneeraj ji maine rachna mein jaroori parivartan kar diye hain.dhyan dilane ka shukriya.
ReplyDeletedil ke badle dil .........
ReplyDeleteaha kya sher kaha hai
bahut shaandaar gazal
हम मरेन्गे मिटेगे नही जियेगे आपकी मुस्कान के साथ
ReplyDeleteप्रशंसनीय -मंच पर भी ,ब्लाग पर भी ।
ReplyDeleteशाम ढलती रही , और सूरज डूब गया सागर में |
ReplyDeleteबस तेरी याद ही रही , जो ली मुझे मयखाने में ||
shekhar kumawat
kavyawani.blogspot.com/
kiran ji, kya kahu aur kya na kahu....sochata hu mere shabdo me in gazlo ki tareef kam na pad jaye...dil ko choo gai hai aapki gazle..main to aap aur aap ki gazlo par fida ho gya...
ReplyDeleteji ap ne kitni aachi baat kahi ha dil ke badle daav par dil lage................... par kavita ji aisa hota bahut kam ha
ReplyDeleteaap ki is kavita ne dil ko chu liya ha........... bahut aacha likhti ha aap
ReplyDeletemar mite hai jo meri muskan pe unko mere gam ka andaja nahi .................
ReplyDeleteMAR MITE HAI JO TERI MUSKAN PAR
ReplyDeleteKHELNA UNKO PARHA HAI JAAN PAR
Kamal
कहा से तारीफ करूँ तारीफ़ करने के किये शब्दों ही नहीं हैं
ReplyDeleteबहुत शानदार लिखा है
मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ|लोगों को ऐसी निंदनीय कार्य नहीं करना चाहिए|
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