ख्वाब आते रहे ख्वाब जाते रहे
नींद ही में अधर मुस्कुराते रहे
सुरमई साँझ इकरार की थी मगर
रस्म इनकार की हम निभाते रहे
चांदनी रात में कांपती लहरों को
कंकरों से निशाना बनाते रहे
बोझ शर्मो-हया का ही हम रात-भर
रेशमी नम पलक पर उठाते रहे
उनके बेबाक इजहारे-उल्फत पे बस
दांत में उँगलियाँ ही दबाते रहे
वक़्त की बर्फ यूँ ही पिघलती रही
वो मनाते रहे हम लजाते रहे
ऐ "किरण" रात ढलती रही हम फ़क़त
रेत पर नाम लिखते मिटाते रहे
**************
डॉ कविता"किरण"
नींद ही में अधर मुस्कुराते रहे
सुरमई साँझ इकरार की थी मगर
रस्म इनकार की हम निभाते रहे
चांदनी रात में कांपती लहरों को
कंकरों से निशाना बनाते रहे
बोझ शर्मो-हया का ही हम रात-भर
रेशमी नम पलक पर उठाते रहे
उनके बेबाक इजहारे-उल्फत पे बस
दांत में उँगलियाँ ही दबाते रहे
वक़्त की बर्फ यूँ ही पिघलती रही
वो मनाते रहे हम लजाते रहे
ऐ "किरण" रात ढलती रही हम फ़क़त
रेत पर नाम लिखते मिटाते रहे
**************
डॉ कविता"किरण"
उनके बेबाक इजहारे-उल्फत पे बस
ReplyDeleteदांत में उँगलियाँ ही दबाते रहे
nice
ख्वाब आते रहे ख्वाब जाते रहे
ReplyDeleteनींद ही में अधर मुस्कुराते रहे
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
दिल को छुं लेने वाली .......
ReplyDeleteश्रृंगार की ग़ज़लें लिखने में आप कमाल हैं,कोई सानी नहीं.
ReplyDeleteकविता जी, बधाइयाँ .
शुभकामनाएँ.
अनिर्वचनीय ।
ReplyDeleteऐ "किरण" रात ढलती रही हम फ़क़त
ReplyDeleteरेत पर नाम लिखते मिटाते रहे
बहुत ही शानदार रचना है♥3
आज पहली बार यहाँ आया!
ReplyDeleteआपकी बेहतरीन ग़ज़ल पढ़कर दिल को बहुत सुकून मिला!
बहुत दिनों के बाद एक अच्छी ग़ज़ल पढ़ने को मिली!
--
बौराए हैं बाज फिरंगी!
हँसी का टुकड़ा छीनने को,
लेकिन फिर भी इंद्रधनुष के सात रंग मुस्काए!
उनके बेबाक इजहारे-उल्फत पे बस
ReplyDeleteदांत में उँगलियाँ ही दबाते रहे
Kya Baat hein... Kitna khubsurat ashyaar hein .. Buhut hi Behtrin ...
ye to galat bat hai,neend me adhar muskurate rahe !vaise gazal achhi hai .badhai!
ReplyDeleteसुरमई साँझ इकरार की थी मगर
ReplyDeleteरस्म इनकार की हम निभाते रहे
चांदनी रात में कांपती लहरों को
कंकरों से निशाना बनाते रहे
Wah Wah Kya Khoob Kaha hai aapne
Lafzon ki jadugari koi aapse seekhe.
ख़ूबसूरत ख्यालों के लिए बहुत सी बधाईयाँ !
ReplyDeleteवक्त की बर्फ यूँ ही पिघलती रही.....वाह कविता जी वाह...बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...दिली दाद कबूल करें...
ReplyDeleteनीरज
किरण जी
ReplyDeleteप्रणाम ,
आप ने ग़ज़ल में तो अपने भावुक मन को सामने रख दिया ,
साधुवाद
wakt ki barf yun pigalti rahi wo manate rahe hum lajate rahe......
ReplyDeletebahut khub ....
isase jyada kya kahaja sakata hai
हर शेर कमाल का है ... इसी बहर पर बना गीत याद आ गया ...
ReplyDeleteचश्में नम मस्कुराती रही रात भर ...
सुरमई साँझ इकरार की थी मगर
ReplyDeleteरस्म इनकार की हम निभाते रहे
ग़ज़ल का रिवायती रंग बेहद खूबसूरत अंदाज़ में पेश किया गया है.
हर शेर दिल को छू गया.
ख्वाब आते रहे ख्वाब जाते रहे
ReplyDeleteनींद ही में अधर मुस्कुराते रहे.
बहुत सुन्दर
नमस्कार
ReplyDeleteमैंने आपकी गजल को पढा है ा काफी खूबसूरत वातावरण तैयार किया है शब्दों से
भावों की अभिव्यक्ति भी अत्यन्त गहन है
याद आता है एक कलाम गुलाम अली साहब का गाया हुआ रेत पे
क्या लिखते रहते हो ा चूंकि मैं स्वय संगीत जगत का एक हिस्सा हुं मौका पडा तो इस गजल की कम्पोजिशन रिकार्ड कर भ्ेजने का प्रयास करूंगा ा एक सुन्दर सुरमयी आक़ति के लिए आपकाे बहुत ही बधाई
shukriya Markandey ji.aap meri gazal ko sangeet den isse achhi baat kya ho sakti hai.my\ujhe iski composition ki prateeksha rahegi shukriya.
ReplyDeleteNEEND ME ADHARON KA MUSKRAN.....ATI SUNDAR..
ReplyDeleterashm inkar ki ham nibhate rahe. bahut hi sundar ser hai. badhai ho.
ReplyDeleteaap ki lekhni ka jawab nahin.aap ne jo kavita chakradhar chaman main sunayi thi kripya wph blog par prakashit karey.atti sunder kavita hai woh.ASHOK CHANDNA
ReplyDeletewhat nice smile
ReplyDeleteKavita ji bahut khoob kaha aapne aisa lagata hei aap bahut hi dil se sochate hei and likhate hei aise hi achcha likhate rahe...... aour aise hi hum dil se padhate rahe............
ReplyDeleteSo talented - nice poem am delighted to read it
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