Thursday, October 8, 2009

लो समंदर को सफीना कर लिया


लो समंदर को सफीना कर लिया
हमने यूँ आसान जीना कर लिया

अब नहीं है दूर मंजिल सोचकर
साफ़ माथे का पसीना कर लिया

जीस्त के तपते झुलसते जेठ को
रो के सावन का महीना कर लिया

आपने अपना बनाकर हमसफ़र
एक कंकर को नगीना कर लिया

हंसके नादानों के पत्थर खा लिए
घर को ही मक्का मदीना कर लिया
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4 comments:

  1. Wah wah....bahut khoob, stri ho ya purush apki is rachna se relate kar sakta hai...bahut achha...badhai

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  2. ek mukammal gazal gai jismai ek ek sher ko chun chunkar piroya gaya hai

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  3. motio ki mala ha tarif k liye lbj kha khoje ..g bahut sundar ha g

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