लो समंदर को सफीना कर लिया
लो समंदर को सफीना कर लिया
हमने यूँ आसान जीना कर लिया
अब नहीं है दूर मंजिल सोचकर
साफ़ माथे का पसीना कर लिया
जीस्त के तपते झुलसते जेठ को
रो के सावन का महीना कर लिया
आपने अपना बनाकर हमसफ़र
एक कंकर को नगीना कर लिया
हंसके नादानों के पत्थर खा लिए
घर को ही मक्का मदीना कर लिया
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Wah wah....bahut khoob, stri ho ya purush apki is rachna se relate kar sakta hai...bahut achha...badhai
ReplyDeleteek mukammal gazal gai jismai ek ek sher ko chun chunkar piroya gaya hai
ReplyDeletemotio ki mala ha tarif k liye lbj kha khoje ..g bahut sundar ha g
ReplyDeleteshukriya dadheech ji.
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