दोस्ती किस तरह निभाते हैं
मेरे दुश्मन मुझे सिखाते हैं
नापना चाहते हैं दरिया को
वो जो बरसात में नहाते हैंख़ुद से नज़रें मिला नही पातेवो मुझे जब भी आजमाते हैंजिंदगी क्या डराएगी उनकोमौत का जश्न जो मनाते हैंख्वाब भूले हैं रास्ता दिन मेंरात जाने कहाँ बिताते हैं --------------------------डॉ.कविता'किरण' शेष 'तुम्ही कुछ कहो ना!' ग़ज़ल संग्रह में
Peeda ko pran de diye apne isme toh.....ye kuch log hee samajh sakte hain ki...dard ka had se guzar jana hai dawa ho jane...umda
ReplyDeleteसारी कविता बहुत खुबसूरत है परन्तु आपसे खुबसूरत नहीं है.....................
ReplyDeleteक्या बात है। बेहद खूबसूरत व दिल से लिखी गयी रचना। बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteउसकी बेकरारी को बस ये मन समझता है , बहुत खूब
ReplyDeleteहर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteye ek badhiyaa gazal hai jise baar baar padhne kaa man kartaa hai.
ReplyDeletewah kiran ji maine to rat li ye kavita aapki
ReplyDeleteaapki khubhsurti ki tarah aapki kavitaye bhi sundar hai..........kavita ji
ReplyDeleteBahut sundar
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ReplyDeletecooll :)))
ReplyDeletecooll :)))