नाम मेरा 'किरण' है ऐ साहिब!मेरे अंदर मेरा उजाला है-डॉ.कविता"किरण" I AM LIGHT OF LOVE,LET ME SPREAD IN YOUR HEART AND YOUR LIFE-Dr.kavita'kiran'
Wednesday, October 21, 2009
व्यर्थ नहीं हूँ मैं!
व्यर्थ नहीं हूँ मैं!
जो तुम सिद्ध करने में लगे हो
बल्कि मेरे कारण ही हो तुम अर्थवान
अन्यथा अनर्थ का पर्यायवाची होकर रह जाते तुम।
मैं स्त्री हूँ!
सहती हूँ
तभी तो तुम कर पाते हो गर्व अपने पुरूष होने पर
मैं झुकती हूँ!
तभी तो ऊंचा उठ पाता है
तुम्हारे अंहकार का आकाश।
मैं सिसकती हूँ!
तभी तुम कर पाते हो खुलकर अट्टहास
हूँ व्यवस्थित मैं
इसलिए तुम रहते हो अस्त व्यस्त।
मैं मर्यादित हूँ
इसीलिए तुम लाँघ जाते हो सारी सीमायें।
स्त्री हूँ मैं!
हो सकती हूँ पुरूष
पर नहीं होती
रहती हूँ स्त्री इसलिए
ताकि जीवित रहे तुम्हारा पुरूष
मेरी नम्रता, से ही पलता है तुम्हारा पौरुष
मैं समर्पित हूँ!
इसीलिए हूँ उपेक्षित,तिरस्कृत।
त्यागती हूँ अपना स्वाभिमान
ताकि आहत न हो तुम्हारा अभिमान
जीती हूँ असुरक्षा में
ताकि सुरक्षित रह सके
तुम्हारा दंभ।
सुनो!
व्यर्थ नहीं हूँ मैं!
जो तुम सिद्ध करने में लगे हो
बल्कि मेरे कारण ही हो तुम अर्थवान
अन्यथा अनर्थ का पर्यायवाची होकर रह जाते तुम।
**************************************-डॉ.कविता'किरण;
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i agree wid u.... without women, men are nothing..... hats off....
ReplyDeletevr nice mam....i couldn't understand d whole meaning but howmuch i get is simply surerb....keep it up mam..
ReplyDeleteaapki rachanaayen padhi achhee lagi, aap mere blog pe aayee iske liye dil se aabhaari hun... mulakat hoti rahegi ummid karta hun,,
ReplyDeletearsh
wah aapki rachna pahli baar padhi
ReplyDeletekamaal kahti hai
arth aadmi ko aurat ke hone se hi mil raha hai
आपने न केवल सही अपितु सटीक लिखा
ReplyDeleteमेरे कविता संग्रह -औरत को समझने के लिये की पहली कविता देखें
सहन
करना सीखना है
तो सीखो धरती से
या फ़िर औरत से
जरूरी नहीं वह औरत
तुम्हारी मां बहन या बेटी हो
हो सकती है
वह तुम्हारी पत्नी भी-
यह तथा कुछ अन्य कविताएं
http://katha-kavita.blogspot.com/ पर देखी जा सकती हैं
श्याम सखा श्याम
दिल को अन्दर तक झकझोर देने वाली इस रचना के लिए आपको कोटिश बधाई...अक्षरश सत्य लिखा है आपने...वाह..आज आपको पहली बार पढने का मौका मिला...आपकी लेखन शैली बहुत ही प्रभाव शाली है...लिखती रहें...
ReplyDeleteनीरज
बहुत बढिया
ReplyDeleteलेकिन पुरुष भी ऐसा ही हो जाता तो फोटो कोपी सा हो जाता और तुम ऐसी हो इसलिये तुम हो वरना पुरुष जैसी हो जाती तो होती होती नही होती क्य फ़र्क पडता है.
मस्त लिखा है आपने ।
ReplyDeleteye to keval pyar hai ke vimochan par hardik badhai hamari shubh kamnayen aapke sath hain
ReplyDeletejagdish tapish
वाह हरी शर्मा जी, क्या मस्त लिखा है , सच्चाई तो यही है। तुम वह सब इसलिये कर पाती हो कि ईश्वर ने तुम्हें एसा ही बनाया है, क्या पुरुष द्वारा यह नहीं कहा जासकता कि ’
ReplyDelete”’तेरे त्याग द्रडता की सारी कहानी,
जरा सोचलो कैसे परवान चढते,
हमीं जब न होते जो सखि हम न होते?”..
-वस्तुतः यह एकान्गी सोच है, फ़ैशन की तरह। सही सोच यह होनी चाहिये--
”””’हमीं हैं तो तुम हो सारा जहां है,
जो तुम हो तो हम हैं सारा जहां है।
कहीं कुछ न होता जो हम तुम न होते। ”’
Sundar
ReplyDeleteVYARTH NAHI HU MAI SACH HI LIKHA AAPNE MAI SAMARPIT HU TABHI UPECHHIT PEEDIT SOSHIT PARITYAKT HU KAVITA JEE HUM apnaghar sanstha chalate hai bharatpur mai waha har mahila kee alag kahani hai sach mai ek jhakjhor kar dene wali shasakt rachna likhi aapne ashok khatri bayana mob 9460012121
ReplyDeleteव्यर्थ नहीं हूँ मैं!
ReplyDeleteजो तुम सिद्ध करने में लगे हो
बल्कि मेरे कारण ही हो तुम अर्थवान
अन्यथा अनर्थ का पर्यायवाची होकर रह जाते तुम।
Bahut sundar rachna!
Bahuthi pyari rachana hai aapki, maine bhi Stri par poem likhi hai, lekin uska meaning alag hai. Maine use kabhi ekali nahi samzane k liye likha aur aapne uska pura astitvahi likha . Kulmilakar meri rachana puri ho gae hai lagta hai.
ReplyDeleteThanks
Disha from Nagpur
Marathi Kavita
bahoot dinon ke baad aisi dil ko choone wali kavita padhi hein, kavayitri dekhi hein --- Rajendra Yelnoorkar . Your facebook friend
ReplyDeleteThis is one of the best poem I came across... Really great...
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