Wednesday, October 7, 2009

रेत पर घर बना लिया मैंने


दिल में अरमां जगा लिया मैंने
दिन खुशी से बिता लिया मैंने

इक समंदर को मुंह चिढाना था
रेत पर घर बना लिया मैंने

अपने दिल को सुकून देने को
इक परिंदा उड़ा लिया मैंने

आईने ढूंढ़ते फिरे मुझको
ख़ुद को तुझ में छुपा लिया मैंने

ओढ़कर मुस्कुराहटें लब पर
आंसुओं का मज़ा लिया मैंने

ऐ 'किरण'चल समेट ले दामन
जो भी पाना था पा लिया मैंने
*************************ग़ज़ल संग्रह 'तुम्ही कुछ कहो ना!' में से







2 comments:

  1. is gazal ko padhte hue aisa lagta hai jaise man ke ahsaas hilore le rahe ho

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  2. aaine dhund te fire mujhko ...
    khud ko tujhme chupa liya manie

    Bhot KHUb

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