Tuesday, October 13, 2009

ये सोच के हम भीगे

गर सारे परिंदों को पिंजरों में बसा लोगे
सहरा में समंदर का फ़िर किससे पता लोगे

ये सोच के हम भीगे पहरों तक बारिश में
तुम
अपनी छतरी में हमको भी बुला लोगे

इज़हारे-मुहब्बत की कुछ और भी रस्में हैं
कब
तक मेरे पांवों के कांटे ही निकालोगे

सूरज हो, रहो सूरज,सूरज रहोगे ग़र
सजदे
में सितारों के सर अपना झुका लोगे

रूठों को मनाने में है देर लगे कितनी
दिल
भी मिल जायेंगे ग़र हाथ मिला लोगे

आसां हो जायेगी हर मुश्किल पल-भर में
ग़र अपने बुजुर्गों की तुम दिल से दुआ लोगे *********************************डॉ.कविता'किरण'

3 comments:

  1. गर सारे परिंदों को पिंजरों में बसा लोगे
    सहरा में समंदर का फ़िर किससे पता लोगे

    ये सोच के हम भीगे पहरों तक बारिश में
    तुम अपनी छतरी में हमको भी बुला लोगे

    इज़हारे-मुहब्बत की कुछ और भी रस्में हैं
    कब तक मेरे पांवों के कांटे ही निकालोगे

    wahhhhhhhhhhhh

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  2. kya ras hai sringar ka ati uttam.....seekh bhi hai sulah bhi hai. wah wah

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  3. आसां हो जायेगी हर.................
    .........................दुआ लोगे

    अति सुन्दर कहा आपने आपकी हर गजल दिल को छू जाती हॆ

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